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श्री प्राचीनस्तवनावली . . . . [१३९. महिनो लागीयो सो पियु, वच्छ बारस तहेवार । सखिया पूजे गायने सरे, घर घर मंगलाचाररे ॥ नेमि० ॥२॥ आशोज महिनो लागियो सकाइ, दिन जो खारा जाय । परव होय तो उड़ मिलं सकाइ, लाउं नेम मनायजी ॥ नेम० ॥३॥ कार्तिक महिनो लागियो सकाइ, रूप चवदशरी रात । अब घर आवो वालमा सकाइ, द्वीपमाला परभात हो, ॥ नेमि० ॥ ४ ॥ अगहन अकेली किम रहुं सकाइ, में सांच झूठ निरधार । तेल छड़ी तिल निसरिया सरे, राजुल राजकुंवारजी ॥ नेमि०॥५॥ पोस दोष किसको देउ समे, कर्मन केरो दोष । ज्यांरा प्रीतम घर वसे सकाइ, ज्यांने प्यारो पोसजी ॥ नेमि०॥ ६ ॥ माघ महिने वसंत पंचमी सरे, घर घर उड़े गुलाल । एकवार तो खबर करोने, राजुलको न हवालरे । नेमि०॥७॥ फागुण महिनो लागीयो सकाइ, सब मिल खेले फाग । पियु हमारा घर नहीं समें, किण संग खेलु फागजी ॥ नेमि० ॥ ८॥ चैत्र महिनो लागियो