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________________ २४० ] श्री प्राचीनस्तवनावली सकांइ, सज सोल सिणगार | गौरी पूजे गायने सरे, भर भर मोतियन को थाररे ॥ नेमि० ॥ ९ ॥ वैशाख महिनो आवियोरं लू वाजे असराल । धूप पड़े धरती तपे सरे, जले जमी पर पांवरे ॥ नेमि० ॥ १० ॥ जेठ महिनो आवियो सरे, पड़े आकरी धूप । तेल छड़ी तिल निसरथा से वांको पड़ गयो कालो रूपरे ॥ नेमि० ॥ ११ ॥ आषाढ महिनो आविया सरे, नेम न लीनो सार । नेमि राजुल गिरनार पेसवां, लीनो संजम भाररे ॥ नेमि० ॥ १२ ॥ समय सुंदरजीनी वीनती सकाई सुणजो वारंवार वारे मास वर्ण करू तीरे, सुणजो बाल गोपालजी ने० ॥ १३ ॥ ॥ श्री गणाधीश्वर गहुंली ॥ रतनमुनिजी गुरू वन्दो मोरे प्यारे, वन्दत होत आनन्द मोरे प्यारे ॥ टेक ॥ भव्य जीव उपकार के हेतु, दिव्य चरित्र तुम्हारा । निर्मल कीना दर्शन तुम गुरु, ज्ञान तणा भंडार मोरे प्यारे ॥
SR No.032200
Book TitlePrachin Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMannalal Mishrilal Chopda
PublisherMannalal Mishrilal Chopda
Publication Year1934
Total Pages160
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size11 MB
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