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श्री प्राचीनस्तवनावली ॥ आठमनी पूजा स्तवन लीख्यते ॥
॥ ढाल १ ली। सोलमा जिनवर सेवियेजी, प्रह समे बे कर जोड।सुप्रसन्न वदन सोहामणो, पूरे वांछित कोड॥ सो० ॥१॥मुझ मन मोडं जिनगुणेजी। जिम साधु कर बंद राय। नाम सुणी मन हुलसेजी, लच्छी लीला थर थाय ॥ सो० ॥२॥ तुं जगजीवन वालहो जी, तुं गति तुं मति देव माहरो। चिंतित तुहिय सजीतण करो ताहरी सेव ॥ सो० ॥३॥ धन धन तेह न ताहरोजी, पूजा रचाइ शुभ रसाल। सुलभ बुद्धि हुवे ते सदाजी धन धन तसु अवतार ॥सो०। ॥ ४ ॥ रायपसेणी सूत्रमेंजी, पूजा सत्तरप्रकार । अति गणे उलसे आदरोजी, ते सुणजोई तिकाल ॥सो०॥५॥
॥ढाल २॥ ... भवियण भगवंत पूजो भावसु, त्रिकरण शुद्र त्रिकाल हो भवियण, हवे विस्तार पूजा सुणो