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१२२] , .. . . श्री प्राचीनस्तवनावली भोणीयो भेटे पुत्र कुपुत्रज जायो । भलो मँडो पण जादवकुळनो, तुम बांधव केवायो ॥ प्रभु०॥ ॥५॥ मोहटा राजानी चाकरी करतां,रांक सेवक बहु हरसे । सुर तरु सरिखो अपजज थासे तो लरी केम फरसे॥ प्रभु०॥६॥छप्पन कोडरे जादवनोसाहेबो कृष्णज नरकज जासे।नेमि जिनेश्वर केरोरे बांधव जब मोही अपजस थासे ॥प्रभु०॥७॥ समकित शुद्धनी परिक्षा करीने, बोलिया केवलनाणी। नेम जिणेसर दियोरे दिलासो, खरो रुप यो जाणी॥ ॥ प्रभु०॥८॥ नेमि कहेरे तुम चिंता न करसो, तुम पदवी हम सरिखी। आवती चौवीशी होसो तीर्थकर, हरि पोते मन हरखी ॥ प्रभु० ॥९॥ जादवकुल उजलायोरे नेमजी । समुद्रविजय कुल दीवो। इन्द्र कहेरे सेवा देवीनो नंदन, क्रोड़ दीवाली जीवोरे ॥ प्रभु० ॥१०॥