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३०] . . . . श्री प्राचीनस्तवनावली गुणनिलो, पुत्र होसे भलो, दश दिशा खरग ज्युं, उद्योतकारी अहो उ० ॥३॥
॥ढाल ३ री॥
· राग सारंग। अश्वसेन राय के सुत जायो, बामा राणी के सुत जायो ॥ पोस पढम दशमी दिने स्वामी, वंस इक्ष्वाग सुहायो॥अ०॥ १०॥ छप्पन दिशि कुमरी मिली गायो। नारकीया सुखपायो॥ अ०॥ ११ ॥ चौसठ इन्द्र मिली मनरंगे, मेरु शिखर न्हवरायो ॥अ०॥१२॥ शुभ अनुकुल समीरण वायु ॥आणंद अंग नमायो॥अ०॥१३॥थाल विशालभरी मुक्ताफल, सारंग वदन वधायो ॥ अ०॥ १४ ॥
॥ढाल ४ थी॥
॥राग वसंत॥ .. सुपन्न पन्नग पेख्यो प्रभुनी सार, प्रभु नाम दियो श्री पार्श्वकुमार । स्वामी नव करतन लीला