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निस्तवन
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४] . . . . श्री प्राचीनस्तवनावली
॥अथ जय महाशय ॥ जय सबल सुरासर ममिय पायणाए, जय कंचन कोमल पभणे रायए । जय सुन्दर सुभवि सीर सौभागण, जयशान्तिजिनेश्वरभमणेरायए॥१॥ सुभ वैमापिकथी चवीया, खामी नयर हथना जरपुर गामए ॥ विश्वसेन नरेसर-गृह मझारए, पठराणी अचिरादेवी नार ए ॥२॥ तसु उदर सरोवर-राय हंस ए, अवतरिया हो जिनवर कुलमा वंश ए। आये-सातम भादवरे मास ए, नही अनुपम संख रास ए॥३॥ चवदे स्वप्न लया जननी ताम ए। निरखे सह गयवर जिनवर भोयण साम ए। जेठ वदि तेरस पढमे पक्ष ए। जायो जिणनायक भरणी रिख ए ॥४॥दिशि कुमरी छप्पन गुण विसाल ए। जल आसण लावे गणे रसाल ए। निरखे सहु नवीनवी सुहीरे क्रमए'कुर निर्मल तिहां सुख अचज डंभ ए ॥५॥ सुर गरिसलेवण जिनवर अंग ए। हवं नवण कराव चासठ इन्द्र ए। जल भारया हो रूपे सूवन्नमें ए। एम भणे कलश जोजन मे