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________________ श्री प्राचीनस्तवनावली , . . . [१२७ भरपूर ए। सु०।ल०॥६॥ मनुष्य गति में ऊपज्यो कांइ० भील भोई चंडालए।सु०। ल०॥७॥ देवगति भवमें पामीयो, कांइ० व्यंतर भूत पीशाचए। । सु०। ल०॥८॥पाप तणा फल पामीयो, कांइ० अपणी करणी रो सारए। सु०। ल०॥ ॥ अविनाशीपद में लह्यो, कांइ देवगुरु के प्रसादए । सु० ल०॥१०॥ म्हारो लागोर प्रभुजी सु ध्यान ए। सु० ल० ॥११॥ चेतनका बजारमें, कांइ० आयो२ लेहरयो विकाउं ए। सु० ल० ॥ १२ ॥ यो लेहरयो मो लवे, कांइ कुण देसी दामए । सुल० ॥१३॥ दर्शन लेहरयो मोलवे, कांइ धर्मशील मोलए ।स० ।ल०॥ १४ ॥ लेहरयो मोंघामोलको, कांइ० जीकी छे नवी नवी भांतरोए । सु०। ल० ॥१५॥ शील संजम सु लेहरयो, कांइ करी लीधो मोलए। सु०। ल०॥ १६ ॥ करुणा केरी भातड़ी, कांइ दया धर्म री लेहरांए । सु०। ल०॥१७॥ पंच सुमतिको रंग वसीयो कांई क्षमालेहरियो नाथए।सु० ल०॥१८॥
SR No.032200
Book TitlePrachin Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMannalal Mishrilal Chopda
PublisherMannalal Mishrilal Chopda
Publication Year1934
Total Pages160
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size11 MB
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