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१२८] . . . . श्री प्राचीनस्तवनावली धर्म जिनेश्वरको लहरियो, कांइ जगमें मोलवे ए मोटी वात ए। सु० । ल०॥१९॥ धन धन थाहरो लेहरियो, कांइ सब मिल करेरे वखाण ए ॥सु० ॥ ल०॥ २० ॥ यो कुण ले हरियो पहेरसी, कांइ यो कुण निरखण हार ए । सु० ल० ॥ २१ ॥ राजूल लहेस्यो पहेरसी, कांइ नेमजी निरखणहार ॥ सु० ल० २२ ॥ ज्ञान गंभीर म्हारी बादली, काइ लहेरयो अन भीज्यो ए ॥ सु० ल० ॥२३॥ गिरनार जाकी वाटड़ी कांइ० उड़े२ मार्ग जीणी ३ खेह ए ॥ सु० ल० ॥ २४ ॥ फागुण मासरी ऋतु भली, कांइ नेमिश्वर खेले फाग ए ॥सु० ल० ॥२५॥ आठ कर्मकी धूलड़ी कांइ० आतमसु खेले फाग ए॥ सु० ल० ॥ २६ ॥ ध्यान क्षमा पाणी कियो, कांइ० तनकी करी गुलाल ए। सु० ल० ॥ २७ ॥ तप जप शील पाली करी, कोइ० नेमिसर मुक्ति सिधाया ए। सु० ल० ॥२८॥ सहसावनका बागमें कांइ० अति लीनो फूलमाल