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१२६] . . . . श्री प्राचीनस्तवनावली आधार । करजोड़ी मुनि दयासील कहेरे, जोजो पंडित विचार ॥ फि०॥११॥
श्री नेमि जिणंदकों अध्यात्म लहरयो
लहरयो भीजे म्हारो रंग चुवे ए देशी.
लहरयो भीजे मारो रंग चुवे, कांइ भींजेर रंग सुथारो एसुज्ञानी जीवड़ा । थे तो माणो माणो मुक्तिरो मोजांररे ।।सुज्ञा०जी० ल०॥म्हारो लागोर जिनजी सुं ध्यान रे । सु० ल० ॥१॥ उंच नीच दुःख में सह्या, काइं उं०॥ कांइ कमों केरा वसए ॥सु० ल०॥२॥ लाख चौराशी यौनिमें। कांइ ला० सह्या दुःख अनंत ए। सु० ल०॥३॥आदि निगोदे हुं रुल्यो, कांइ आदि० । कांई कहेता न आवे अंत ए। सु० ल० ॥४॥ नरकां का दुःख में सह्या, कांइ छेदन भेदन ताड़नाए,॥सु० ल०॥५॥ तिर्यच भवमाही हुं भन्यो, ति० काइ दुःख सह्या