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श्री प्राचीनस्तवनावली . . . . [१९५ पियर पीता छेरे मुझ रोसीउरे, मावड़ो देखाड़े त्रास ॥ कि० ॥ ४॥ फूओ बैलोरे में में बहु करेरे, फइडी लगावे मुझ राव ॥ पर घर भंजक मामो माहरोरे, मामीनो खोटो स्वभाव ॥ कि० ॥५॥ मासी लूटेरे मंदिरमें पेशीनेरे, मासो देखत लेह जाय । कामे करावेरे, जोरे भाइलोरे, भोजाइ वड़वा धाय ॥ कि० ॥ ६ ॥ फंदे पाडे पितरियो वलीरे, पितराणी कमजात ॥ दादो म्हारोरे धूरथी लोभीयोरे, दादी करे बहु घात ॥ कि० ॥ ७॥ बेटड़ी तपावेरे मुझने अति घणुरे, जमाइ करेरे संताप ॥ बेटो रहेरे मुझसुं रूसणेरे, बहुअर देरे सराफ ॥ कि० ॥ ८ ॥ निर्लज भ्हारोरे वडाउ सहु कहेरे, वड़ीआइ विकराल। कोई नहीं भल्लु इण कुटुंबड़ेरे, बोले आल पंपाल ॥ कि० ॥ ९॥ एषो गामेरे दो चोर नित फरेरे, तिणे सुख नहीं लव लेस। एहवे मूकीरे जे अलगा रहेरे, ते फुन्यवंत विशेष ॥ कि० ॥१०॥ एह अरथ कह्यो अगोचरूरे, सह गुरुने