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६६ ] . . . . श्री प्राचीनस्तवनावली
दीवालीनी थुई ॥ - चउद सहसमुनिवरगण साथे, गाम नगर विचरंताजी। छेहलो चउमासो हस्तिपाल नृप, शुक्ल शालाये करताजी ॥ पावापुरी अमावस कार्तिक, नागकरन स्वाति योगोजी. वीर जिनेसर शिवपुरलीनो, प्रणमो ते भवि लोगोजी ॥१॥तिण अवसर नवदुगुणा भूपति, पौषधव्रत सम भावेजी सोले प्रहर लग देशना सुणंता, अनुभव जोग रमावेजी॥ त्रिभुवन नायक जग जन बंधु, चिंतामणि जग त्राताजी। सयल जिनेश्वर भावे प्रणमुं, ज्ञानामृत घट दाताजी॥२॥ नंदीश्वर पावन्न जिनालय मंडल विपुल रचीजेजी। पूजाकर जिन बिंब सनात्रे, पंचामृत कर कीजेजी॥संजम ज्ञान निवाण कल्याणक, भावे जाप जपीजेजी। दीवाली तप सूचक आगम, नित प्रति भविसेवीजेजी ॥३॥ वीर चरित मुनि मुखथी सुणता, भवभव पाप पलायेजी । काति अमावस तप आदरता, संपदा सहज