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श्री प्राचीनस्तवनावली . . . . [६३ धारीजी। पंचेन्द्रिय सुख विषय तजिने, पंच सुमति लहे भारीजी। लोका लोक प्रकाशक पंचम ज्ञान दिवाकर जायाजी । पांचम तिथि जिन पंच कल्याणक, प्रणमुं शिवसुख दायाजी ॥२॥ रजत कनक मणि पाटा ऊपर, पुस्तक सहु स्थापीजेजी। थापनाचारिज ठवणी आगल, मंडल नंदी रचीजेजी ॥ पुस्तक पूजी थापनाचारज, नंदी पूजन कीजेजी॥ सुदि पांचम इणविध जिन प्रवचन, शुभ श्रावक सेवीजेजी ॥३॥ कार्तिक सुदि पंचमी तिथि रूडी, तप करिये शुभ भावेजी। पंचानुत्तर पदभोगवी, पंचमी गति सुख पावेजी॥ खरतर नवनिध वाचक चारित्र, थापे हर्ष अपारोजी। नित प्रति जसु शासनसूरि आपे, ऋद्धि सिद्धि सुख सारोजी ॥४॥
॥ अष्टमीनी थुई ॥ भवारि निवारण, परमाणंद गुण गेह । अर्जुन कनक प्रभ, वज्रमणिच्छविदेह ।। भवि जन हित