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. . श्री प्राचीनस्तवनावली सवला ऊजड वाट ॥ अ०॥४॥ छोडुं सहु उछाछला, कोड़ विणासे काम।पिणमावित न मिटसके, जिम तिम पूरे हाम ॥ अ० ॥५॥
ढाल ९ नवमी आदर जीव क्षबागुण आदर ॥ ए राह ॥
आपण पेहुंआवी नसकुं, मूक्योछे परधानजी । जो साचीसी सेवा सारे, तो राखे ज्यो मामजी। “मुझ मन तुम चरणे लय लीनो.” जिम मधुकर मकरंदनी। पाणी वली पिण पास नछांडे, लीनो सुम मकरंदजी।मु०॥२॥ चपल पणे चूकस्यो तो पिण, मत छोडावो तीरजी। तुरत उत्तर आपे तटकी, गिरूवा हुवे गम्भीरजी ॥ मु०॥३॥ वीजा ने वगसीस करंता, मतमुको विसारजी॥पतिवंचक ऊपर हो पातिक, अबर न छे संसारजी ॥ मु०॥४ ॥वात सहुनो परमारथ, साँभल स्वाम विसालजी श्री जिनराज निराशय करजो, करजो कांइ संभालजी । मु० ॥५॥