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२०] . . . .. श्री प्राचीन स्तवनावली आव्या भविजन तारवाए, निरनम निरहंकार ॥ सेवो० ॥१८॥ पुंडरीक गिरिनी सेवनाए, जेह करे भवि जीव ॥ नमो० ॥ ते आतम निर्मल करीए, पामे सुख सदैव ॥ सेवो० ॥ १९॥ ए गिरिराजने सेवताए, देवचन्द्र पद लहे सार ॥ नमो० ॥ भव भव ए तीरथ सेवनाए, होजो परम आधार ॥सेवो० ॥२०॥
॥कलश ॥ इम सकल तीरथ नाथ शत्रुजय, शिखर मंडण जिनवरो, श्री नाभिनन्दन जग आनन्दन विमल शिव सुख आगरो। शुचिपूर्ण चिदघन ज्ञान दर्शन सिद्ध उद्योत शुभ मने॥ निज आत्म सत्ता शुद्ध करवा, वीरजिन केवल दिने ॥ श्रीसुविहित खरतरगच्छ जिनचन्द्रसूरि साखा गुण निलो। उवझाय वरे श्रीराजसागर, शीश पाठक सिरतिलो। श्री ज्ञानधर्म सुशिष्य पाठक राजहंस गुण वरोः । तसु चरण सेवक देवचन्द्रो विनव्योजगहित करो॥
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