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११८]. . . . . श्री प्राचीन स्तवनावली पूजन थकीरे, पामे परमानंद । भव भव दर्शन जिन तणुरे, मुझने होजो जिनचंद॥ सिद्धा०॥१६॥
पुंडरीक गणधर चैत्यवन्दन . पुंडरिक गणधर ने नमुं, भावधरी उछरंग। प्रथम जिणंद गणधर विषे, ए सहुमें अति चंग ॥१॥ आदि जिणंद आदेशथी, आव्या विमल गिरिंदं । आदरी अणसण अति भलु, पंचकोड़ी मुनिचंद ॥२॥ सिद्धध्यान ध्याता थकाए, करी कर्मनो नाश ॥ चैत्री पूनम शिवसुख लयं, यो जिनचंद्र ते वास ॥३॥
श्री पुंडरीक गणधर-स्तवन नमो नमो पुंडरीक गणधरूरे लो। आदि जिणंद गणधार, मन मोह्युरे ।आदि जिणंद उपदेशथीरे लो। सिद्धगिरि मुक्ति धार ॥ मन मोह्युरे