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८८] . . . . श्री प्राचीनस्तवनावली सत्ता गुण ठीक ॥ नमो०॥४॥ फाल्गुन सुदि सातम लह्यो ए, नमिवि नमीये शिवथान ॥न०॥ चौसठ नमि पुत्री वरूए, आठमे केवलज्ञान॥न० ॥५॥ सागरमुनि तीन कोडिथीए, कोडिथी मुनि श्री सार ॥ न०॥ तेरे कोडिथी शिव वरूए,सोमश्री अणगार ॥ “ सेवो गिरिराजनेए” ॥६॥ ऋषभ वंशी आदित जशाए। तसु सुत आदित्य क्रांति ॥ नमो० ॥ एक लाख परिवारसुंए, पाम्या परम प्रशांत ॥सेवो० ॥७॥ ऋषभवंशी मुनिवर बहुए, गणधर कोडि असंख ॥ न०॥ शिव पहोंता सिद्धाचलेए, निरममने निरकंख ॥ से०॥८॥ दश कोडिथी शिव लघुए, द्राविड़ने वारी खिल्ल ॥नमो०॥ चउद सहस निग्रंथथीए, दमितारा निसल्ल ॥सेवो० ॥९॥ आदिनाथ उपगारथीए, कोडी सत्तर अणगार ॥ न०॥ अजितसेन मुनिसरूए, पाम्या सुख अपार ॥ से०॥ १० ॥ आनन्द रक्षित भावनाए, भावता शिवपुरपत्त ॥ न०॥ कालासी इग सह