________________
श्री प्राचीनस्तवनावली
[ ९३
सहु पूजापो लहिने, कमठ पूजनकारी । प्रभु पधारथा देखण काजे, नाग जले तिण वारी ॥ पाο ॥ ७ ॥ काष्ट फड़ावी नाग निकाल्यो, संभलाव्यो मंत्र भारी ॥ समकित लइने सुरपति हुवो, घरणेन्द्र एकावतारी ॥ पा० ॥ ८ ॥ उगणीसे इगतालीश वर्षे, पोष दशमी रढियाली । आहोर नगरमें उच्छव कीनो, संघ सकल बलिहारी ॥ पा० ॥ ९ ॥ सुन्दर मुरति प्रभुनी विराजे, भविजन कुं सुखकारी । कीर्तिचंद सम सोभे जगमें, केशरमुनि जयकारी
॥ पा० ॥ १० ॥
॥ श्रीनेमप्रभुकी बारेमासी (निहालकी ) ||
राजूल ऊभी विनवे रे पिया, सुणजो नेम कुंवार | आप पोते संयम लीयो रे वारी, जाय वढ्या गिरनार || अब घर आजा जादव नेमजी रे ॥ १ ॥ टेक ॥ खुद कोइ दाख्यो नहीं रे पिया, लीधो संजम भार ॥ ली० ॥ बिन अवगुण पिया