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श्री प्राचीनस्तवमावली
॥ परनारी गमन निषेध सिज्झाय ॥ - नर चतुर सुजाण, परनारीसुं प्रीत कबु न कीजिये ॥ सुण वाला सेण, देख पराइ नार हरख नवी कीजिये ॥ सांझ पड़े दिन आथमे, तेहनोजीव भमरा परे भने । वली घरनो कारज नइ गमे ॥ ॥न०॥ परनारीसु प्रीतड़ली, क्षण एक लागे मीठड़ली; पीछे तोड़े भवनी प्रीतड़ली ॥ नर०॥२॥ तान मोदन प्यालो पायदेसी, थारा शस्त्र वस्त्र खोसी लेसी, थारा हाथमें हाँडी देइदेसी ॥ नर० ॥३॥थारो जोबन लेती लूटीने, थारों धन लेती सब खुटीने; पछे रोसी हियड़ो फूटीने ॥नर० ॥४॥जोबन हारीने काइ करस्यो, देहीनो देव तुमे हरस्यो; पछे दुरगति माही जाइ पडसो ॥ नर० ॥५॥ उदयरत्नकी सीखड़ली, तुम चाखो अनुभव सुखड़ली। एहथी भांजे भव भृखड़ली॥ नर० ॥६॥