________________
"श्री प्राचीनस्तवनावली .
. [१३७ यण प्राणी । भरिया खजाना किसी विध खूट, सदगुरू दीना हाथजी ॥ तुम० ॥६॥ संवत उगणीसो वत्तीसे, शाल बत्तीसे, बम्बाइ चौमासे। मुनि मोहन उपदेश सुणायो, मोक्ष जाणे की आशजी ॥ तुम० ॥७॥
॥ स्तवन ॥ प्रभु वीर तणो उपदेश के, दिलमें धारणारे। भवियण जन्म मरण मिट जाय, फेर नहीं आवणारे ॥ टेर॥ कका कल्पसूत्र सुण सारी, खखा खेवा पार लगारी । गगा ज्ञानसे करो विचारी, घघा घट वीच प्रभु को राख फेर नहीं आवणारे ॥प्रभु०॥१॥ चचा चउदह सुपना देखो, छछो छिन छिनरो लेवो लेखो। जजा जन्म प्रभु को देखो। झझा झठ कब नहीं बोल के फेर नहीं आवणारे ॥प्रभु० ॥२॥ टटा टेर प्रभुसे म्हारी, ठठा ठौर मिले सुखकारी । डडा डर राखो भय भारी, ढढा ढील कबहु नहीं जाण फेर नहीं आवणारे ॥ प्रभु०॥३॥ तत्ता तन मन धन थिर