________________
३२)
वृत्तमौक्तिक
काव्य अवश्य प्राप्त होता है । इस लघुकाव्य में पार्वती और शंकर का शृङ्गारवर्णन किया गया है । इस का उपसंहार और पुष्पिका इस प्रकार है :उपसंहार-गुम्फो वाचां मसृणमधुरो मालतीनामिव स्यात्,
अर्थो वाच्यः प्रसरणपरः सम्मित: सौरभस्य । भावयंग्यो रस इव रसस्तद्विदाह्लादहेतु:
मालेवाऽसौ सुकविरचना कस्य भूषां न धत्ते ॥१०४॥ पुष्पिका-इति श्रीविद्यागरिष्ठ-वसिष्ठ-नारायणभट्टात्मजेन महाकविपण्डित-रायभट्टन विरचितं श्रृङ्गारकल्लोलनाम खण्डकाव्यम् ।
चन्द्रशेखरभट्ट' ने मालिनी छन्द का प्रत्युदाहरण देते हुए लिखा है :"अस्मत्पितामहमहाकविपण्डितश्रीरायभट्टकृते श्रृङ्गारकल्लोले खण्डकाव्येमन इव रमणीनां रागिणी वारुणीयं,
हृदयमिव युवानस्तस्कराः स्वं हरन्ति । भवनमिव मदीयं नाथ शूत्यो हि देश
स्तव न गमनमीहे पान्थ कामाभिरामा ॥" इस पद्य को देखते हुये यह कहा जा सकता है कि काव्य-साहित्य पर आपका अच्छा अधिकार था और यह लघु रचना आपकी सफल रचना है। यह खण्डकाव्य अद्यावधि अप्रकाशित है। इसकी १६६५ की लिखित' एकमात्र १२ पत्रों की प्रति विद्याविभाग सरस्वती भंडार कांकरोली में सं. कां. बंध ६६।१० पर सुरक्षित है । इस प्रति का द्वितीय पत्र अप्राप्त है ।
केटलॉग केटलोगरम् भा. १ पृ. ४७१ के अनुसार रायम्भटरचित 'यति-संस्कार-प्रयोग' नामक ग्रन्थ भी प्राप्त है। रायंभट्ट यही है या अन्य कोई विद्वान् ? इसका निर्णय प्रति के सम्मुख न होने से नहीं किया जा सकता । लक्ष्मीनाथ भट्टः
चन्द्रशेखर भट्ट के पिता एवं कवि रामचन्द्र भट्ट के प्रपौत्र लक्ष्मीनाथ भट्ट के सम्बन्ध में भी कोई ऐतिह्य उल्लेख प्राप्त नहीं है। प्राप्त रचनाओं में पिङ्गलप्रदीप का रचनाकाल १६५७ है, अत: इनका प्राविर्भाव-काल १६२० से १६३० के मध्य का माना जा सकता है। इनकी प्राप्त रचनाओं को देखते हुए यह
१. देखें, वृत्तमौक्तिक पृ. १२६. २. भूतांकषट्विधुमिते (१६६५) वर्षे वारे निशेशस्य ।
चैत्रकृष्णप्रतिपदि लिखितं हरिशङ्करेणेदम् ॥