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भूमिका
५. शृङ्गारवेदान्त-इसका उल्लेख केवल भारतेन्दु हरिश्चन्द्र' ने ही किया है, अन्य किसी भी सूचीपत्र में इसका उल्लेख नहीं है। अप्राप्त ग्रंथ है। मेरे विचारानुसार सम्भव है रसिकरंजनं के अपरनाम 'शृङ्गारवैराग्यशवं' को 'शृङ्गारवेदान्त' मान कर भारतेन्दुजी ने लिख दिया हो !
६. दशावतार-स्तोत्रम्-यह स्तोत्र अद्यावधि अप्राप्त है। इसका केवल एक पद्य वृत्तमौक्तिक' में पञ्चचामरं छन्द के प्रत्युदाहरण-रूप में उद्धृत हुआ है जो निम्नलिखित है :अकुण्ठधार भूमिदार कण्ठपीठलोचन
क्षणध्वनद्ध्वनत्कृतिक्वणत्कुठारभीषण । प्रकामवाम जामदग्न्यनाम रामहैहय
__क्षयप्रयत्ननिर्दय व्ययं भयस्य जृम्भय ॥ ७. नारायणाष्टकम्-यह स्तोत्र भी अद्यावधि अप्राप्त है। मदालसं छन्द का प्रत्युदाहरण देते हुये चन्द्रशेखरभट्ट ने यह पद्य इस रूप में दिया हैकुन्दातिभासि शरदिन्दावखण्डरुचि वृन्दावनव्रजवधू
वृन्दागमच्छलनमन्दावहासकृतनिन्दार्थवादकथनम् । वन्दारुविभ्यदरविन्दासनक्षुभितवृन्दारकेश्वरकृत
च्छन्दानुवृत्तिमिह नन्दात्मजं भुवनकन्दाकृति हृदि भजे ।। कवि की प्राप्त रचनाओं में सं. १५८० तक का उल्लेख है । अतः अनुमान किया जा सकता है कि इसके कुछ समय पश्चात् ही विषप्रयोग से कवि स्वर्गलोक को प्रयाण कर गया हो। नारायण भट्ट
कवि रामचन्द्र भट्ट के पुत्र नारायण भट्ट के सम्बन्ध में कोई विशिष्ट उल्लेख प्राप्त नहीं है और न इनके द्वारा रचित किसी कृति का उल्लेख ही प्राप्त होता है। रायभट्ट
कवि रामचन्द्र भट्ट के पौत्र रायभट्ट के सम्बन्ध में भी कोई ऐतिह्य उल्लेख प्राप्त नहीं है। इनका बनाया हुआ शृङ्गारकल्लोल नामक १०४ पद्यों का खण्ड
१-भारतेन्दु ग्रन्थावली, भाग ३, पृ० ५६८ २-वृत्तमौक्तिक पृष्ठ १२६ ३-
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