Book Title: Visheshavashyakbhashya ka Maldhari Hemchandrasuri Rachit Bruhadvrutti ke Aalok me Gyanmimansiya Adhyayan
Author(s): Pavankumar Jain
Publisher: Jaynarayan Vyas Vishvavidyalay
View full book text
________________
प्रथम अध्याय
विशेषावश्यक भाष्य एवं बृहद्वृत्ति : एक परिचय
६. पुरुष सामायिक के पुरुष (कर्ता) का कथन करते हुए द्रव्यपुरुष, अभिलापपुरुष,
७. कारण
चिह्नपुरुष इत्यादि प्रकार के पुरुषों का कथन किया गया है। (गाथा 2090 से 2097 तक) सामायिक की प्ररूपणा के क्या कारण हैं, इसका उल्लेख है। कारण का निक्षेप चार प्रकार का है। इनके भेद प्रभेदों का कथन दार्शनिक दृष्टि से किया गया है। तीर्थंकर सामायिक का उपदेश क्यों करते हैं यह बताया गया है, गणधर आदि उपदेश का श्रवण क्यों करते हैं इसका भी वर्णन किया गया है। (गाथा 2098 से 2128 तक) ८. प्रत्यय सामायिक का कथन व श्रवण करने वालों को प्रतीति कैसी होती है, इसका वर्णन है। प्रत्यय अर्थात् बोधनिश्चय, इसका भी चार प्रकार का निक्षेप होता है। केवलज्ञानी साक्षात् सामायिक का अर्थ जानकर ही कथन करते हैं, तब ही श्रोता आदि को उसका बोध होता है। (गाथा 2131 से 2134 तक) ९. लक्षण सामायिक का लक्षण नामादि के भेद से बारह प्रकार का होता है। सामायिक सम्यक्त्व, श्रुत, देशविरति और सर्वविरति सामायिक के भेद से चार प्रकार की होती है, कौनसी सामायिक किस भाव वाली होती है इसका कथन किया गया है।
(गाथा 2136 से 2178 तक)
-
-
-
-
-
१०. नय विविध नयाँ से सामायिक का स्वरूप क्या है, इसका वर्णन है। अनेक धर्मात्मक वस्तु का किसी एक धर्म के आधार पर कथन करना नय कहलाता है। नय सात प्रकार का है - नैगम, संग्रह, व्यवहार, ऋजुसूत्र, शब्द, समभिरूढ और एवंभूत । नय के इन भेदों का कथन करते हुए लक्षण, व्युत्पत्ति, उदाहरण आदि देकर अन्य दर्शन की मान्यताओं का युक्तियुक्त खण्डन किया है। (गाथा 2180 से 2287 तक) ११. समवतार कालिक श्रुतों (प्रथम और चतुर्थ पौरुषी में पढ़े जाने वाले) में नयों की अवतारणा नहीं होती। चरण, करण इत्यादि चार प्रकार के अनुयोग का अपृथक् भाव से प्ररूपण होते समय नयों का विस्तारपूर्वक समवतार होता था । द्रव्यानुयोग इत्यादि चार अनुयोगों की पृथक् चर्चा एवं आर्यरक्षित द्वारा अनुयोगों का विभाजन, इत्यादि का विस्तृत वर्णन करते हुए निह्नववाद का भी निरूपण किया गया है। (गाथा 2288 से 2609 तक) निह्नववाद - निर्युक्तिकार निर्दिष्ट सात निह्नवों में शिवभूति बोटिक नामक एक और निह्नव मिलाकर भाष्यकार ने आठ निह्नवों की मान्यताओं का वर्णन किया है। अपने अभिनिवेश के कारण आगमिक परंपरा से विरुद्ध प्रतिपादन करने वाला निहव कहलाता है। सामान्य मिथ्यात्वी और निह्नव में यह भेद है कि सामान्य मिथ्यात्वी जिनप्रवचन को ही नहीं मानता अथवा मिथ्या मानता है। जबकि निह्नव समस्त जिन प्रवचन को प्रमाणभूत मानता हुआ भी मिथ्यात्व के उदय से जिनप्रवचन के किसी एक अंश का परंपरा के विरुद्ध अर्थ करता हुआ जन सामान्य में प्रचार करता है और जैन परम्परा के भीतर ही एक नया सम्प्रदाय खड़ा कर देता है। आठ निह्नव की मान्यताएं निह्नववाद के रूप में प्रसिद्ध हैं।
[37]
-
i. जमालि - इन्होंने बहुरत मत का प्रचार किया । इस मत के अनुसार कोई भी क्रिया एक समय में न होकर अनेक समयों में होती है। इनका जन्म श्रावस्ती नगरी में हुआ था । ये भगवान् महावीर स्वामी को केवलज्ञान होने के 14 वर्ष बाद हुए।
(गाथा 2306 से 2332 तक)