Book Title: Visheshavashyakbhashya ka Maldhari Hemchandrasuri Rachit Bruhadvrutti ke Aalok me Gyanmimansiya Adhyayan
Author(s): Pavankumar Jain
Publisher: Jaynarayan Vyas Vishvavidyalay
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पंचम अध्याय विशेषावश्यकभाष्य में अवधिज्ञान
[329]
विशेषावश्यकभाष्य, कर्मग्रंथ में जो वर्गणा का स्वरूप मिलता है वही स्वरूप गोम्मटसार 188 में भी मिलता है। इस प्रकार संख्या में अंतर होने का कोई विशेष कारण नहीं है। नाम, भेद आदि से इस प्रकार की भिन्नता प्राप्त होती है।
विशेषावश्यकभाष्य के अनुसार ध्रुवादि वर्गणाओं का स्वरूप
(1) ध्रुव वर्गणा - ध्रुव वर्गणा का आशय है शाश्वत अर्थात् जो वर्गणाएं हमेशा लोक में विद्यमान रहे उसे ध्रुव वर्गणा कहते हैं। कार्मण शरीर के अग्रहण योग्य उत्कृष्ट वर्गणा के ऊपर एक परमाणु अधिक वाली वर्गणा जघन्य ध्रुव वर्गणा है। इस प्रकार एक-एक परमाणु बढ़ती हुई अति सूक्ष्म परिणाम वाली अनंत स्कंधात्मक उत्कृष्ट ध्रुव वर्गणा है । ध्रुव वर्गणा के अनंत भेद होते हैं।
ध्रुव वर्गणा से पहले कही हुई औदारिक आदि आठ वर्गणाओं को भी ध्रुव समझना चाहिए, क्योंकि वे वर्गणाएं भी हमेशा लोक में रहती हैं । ध्रुव वर्गणाओं को पंचसंग्रह में ध्रुवाचित्त कहते हैं । ध्रुव के साथ अचित्त विशेषण लगाने का कारण यह है कि जिन वर्गणाओं को जीव ग्रहण करता है, वे वर्गणा सचित्त कहलाती हैं, जैसे औदारिक आदि । जिन वर्गणाओं को जीव ग्रहण नहीं करता है अर्थात् जो जीव के साथ कभी संबंधित नहीं होती हैं, वे अचित्त वर्गणाएं होती हैं जैसे ध्रुवादि । ध्रुव वर्गणा और इसके बाद कही जाने वाली अध्रुवादि वर्गणाएं बहुत द्रव्य से बनी हुई और अति सूक्ष्म परिणाम वाली होने से किसी भी जीव के औदारिक आदि भाव से ग्रहण करने योग्य नहीं होती है।
(2) अध्रुव वर्गणा - जो वर्गणाएं तथाविध पुद्गल परिणाम की विचित्रता से कभी लोक में होती हैं और कभी नहीं होती हैं, वे अध्रुव वर्गणा है । उत्कृष्ट ध्रुव वर्गणा से एक परमाणु अधिक वाली जघन्य अध्रुव वर्गणा होती है। इसमें एक एक परमाणु वृद्धि से अन्त में उत्कृष्ट अध्रुव वर्गणाएं होती हैं । अध्रुव वर्गणा को सांतर - निरंतर वर्गणा भी कहते हैं ।
( 3 ) शून्यांतर वर्गणा - सामान्यतया जिन वर्गणाओं में एक-एक प्रदेश की वृद्धि कभी होती है कभी नहीं होती है अर्थात् ये निरंतर एक-एक प्रदेश की वृद्धि वाली नहीं होती है, वे शून्यांतर वर्गणा कहलाती है। उत्कृष्ट अध्रुव वर्गणा से एक परमाणु अधिक स्कंध की जघन्य शून्य वर्गणा होती है, इस प्रकार एक, दो, तीन यावत् परमाणु स्कंध के बढ़ने से उत्कृष्ट शून्य वर्गणा होती है ।
( 4 ) अशून्यांतर वर्गणा - जो वर्गणाएं लोक में निरंतर एक-एक प्रदेश की वृद्धि से बढ़ती है। यह वृद्धि बीच में नहीं रूकती है, वे अशून्यांतर वर्गणा कहलाती हैं। शून्यांतर वर्गणा से एक परमाणु अधिक की जघन्य अशून्य वर्गणा होती है इसमें एक एक परमाणु स्कंध की वृद्धि होते होते अंत में जो प्राप्त होती है वह उत्कृष्ट अशून्यांतर वर्गणा होती है ।
( 5-8 ) ध्रुवानन्तर अशून्यांतर वर्गणाओं के पश्चात् चार ध्रुवानंतर वर्गणाएं होती हैं जो हमेशा रहने वाली और निरंतर एकोत्तर वृद्धि वाली होती है। इनका परिणमन अत्यंत सूक्ष्म होता है और ये प्रचुर (बहुत) द्रव्यों से उपचित ( बनी हुई) है, अतः पूर्व में वर्णित ध्रुववर्गणाओं से भिन्न है।
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प्रश्न - यहाँ पर चार ध्रुवानन्तर वर्गणा केवल एकोत्तर वृद्धि वाली है तो इसके चार भेद नहीं करके एक ही भेद कर देना चाहिए था ?
उत्तर- चार वर्गणाओं में निरंतर एकोत्तर वृद्धि होती है और अंतराल में वह वृद्धि टूट (रूक) जाती है जिससे मिश्र वर्गणा शुरू होती है अथवा वृद्धि नहीं भी टूटे तो भी वर्णादिक परिणाम की विचित्रता से भी भिन्नता हो जाती है।
188. गोम्मटसार (जीवकांड) भाग 2, गाथा 595 की टीका, पृ. 823