Book Title: Visheshavashyakbhashya ka Maldhari Hemchandrasuri Rachit Bruhadvrutti ke Aalok me Gyanmimansiya Adhyayan
Author(s): Pavankumar Jain
Publisher: Jaynarayan Vyas Vishvavidyalay

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Page 504
________________ सप्तम अध्याय विशेषावश्यकभाष्य में केवलज्ञान [479] हो जाता है। जो आगमकारों को इष्ट नहीं है। अतः सिद्धों की अवगाहना खड़ी समझना ही आगमानुसार है। निषद्यासन से सिद्ध हुए भगवान महावीर की अवगाहना भी उपर्युक्त कारण से चार हाथ सोलह अंगुल की समझी जाती है। अतः सोते, बैठते, घाणी में पिलते, उल्टे, सीधे किसी भी अवस्था में सिद्ध होने पर भी खड़ा आकार ही रहता है । उसमें भी मस्तक लोकाग्र की ओर तथा पांव नीचे की ओर रहते हैं। कुब्जक संस्थान वालों की भी खड़ी अवगाहना ही समझी जाती है। केवली के उपयोग की चर्चा उपयोग बारह होते हैं, हैं यथा- पांच ज्ञान, तीन अज्ञान एवं चार दर्शन । इनमें से 5 ज्ञान 3 अज्ञान को साकारोपयोग - विशेषोपयोग कहते हैं। चार दर्शन को अनाकार उपयोग या दर्शनोपयोग - सामान्य उपयोग कहते हैं । इनमें से केवली भगवान् में दो उपयोग पाये जाते हैं - केवलज्ञान और केवलदर्शन । केवलज्ञान और केवलदर्शन के उपयोग के सम्बन्ध में आचार्यों की विभिन्न अवधारणाएं रही हैं। इस सम्बन्ध में तीन मत प्राप्त होते हैं- 1. क्रमवाद, 2. युगपद्वाद, 3. अभेदवाद । जिनभद्रगणि ने विशेषणवती में तीनों पक्षों की चर्चा की है, किंतु किसी प्रवक्ता का नामोल्लेख नहीं किया। 197 जिनदास महत्तर ने नंदीचूर्णि में विशेषणवती की इन्हीं गाथाओं का उल्लेख किया है। लेकिन किस मत का कौन आचार्य समर्थन करता है, इसका उल्लेख नहीं किया ।198 हरिभद्रसूरि ने चूर्णिगत विशेषणवती की गाथाओं का उल्लेख करते हुए आचार्यों के नामोल्लेख किये हैं। उनके अनुसार युगपद्वाद के समर्थक आचार्य सिद्धसेन, क्रमवाद के समर्थक जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण और अभेदवाद के समर्थक वृद्धाचार्य हैं। 9 मलयगिरि ने हरिभद्र सूरि का ही अनुसरण किया है। 200 आचार्य आत्मारामजी महाराज ने भी सिद्धसेन दिवाकर को युगपवाद का समर्थक माना है । 201 इसके लिए आपने यह प्रमाण प्रस्तुत किया है कि 'एतेन यदवादीद् वादीसिद्धसेनदिवाकरो यथा - केवली भगवान् युगपज्जानाति पश्यति चेति तदप्यपास्तमवगन्तव्यमनेन सूत्रेण साक्षाद् युक्ति पूर्व ज्ञानदर्शनोपयोगस्य क्रमशो व्यवस्थापितत्वात् । '202 सन्मतितर्क के टीकाकार अभयदेवसूरि ने उपर्युक्त मतों के समर्थक आचार्यों के नामों का उल्लेख निम्न प्रकार से किया है। 203 क्रमवाद के समर्थक जिनभद्र, युगपवाद के समर्थक मल्लवादी और अभेदवाद के समर्थक सिद्धसेन दिवाकर | क्रमवाद के विषय में हरिभद्र और अभयदेव एक जैसा उल्लेख करते हैं । युगपद्वाद और अभेदवाद के बारे में दोनों ने भिन्न आचार्यों का उल्लेख किया है । सिद्धसेन अभेदवाद के प्रवक्ता हैं, यह सन्मतितर्क से स्पष्ट है। उन्हें युगपद्वाद का प्रवक्ता नहीं माना जा सकता। इस स्थिति में युगपद्वाद के प्रवक्ता के रूप में मल्लवादी का नामोल्लेख संगत हो सकता है। किन्तु उपलब्ध द्वादशार नयचक्र में इस विषय का कोई उल्लेख नहीं है । अभयदेव ने किस ग्रंथ के आधार पर इसका उल्लेख किया, वह निश्चयपूर्वक नहीं कहा जा सकता 1204 अर्वाचीन विद्वान पं. सुखलालजी संघवी 205 डॉ. मोहनलाल मेहता' भी सिद्धसेन दिवाकर को अभेदवाद का कर्ता स्वीकार करते हैं। पं. सुखलालजी 196. युवाचार्य मधुकरमुनि, औपपातिक सूत्र, गाथा 4, पृ. 178 197. विशेषणवती, गाथा 153, 154 198. नंदीचूर्णि पृ. 46-48 199. हारिभद्रीय वृत्ति पृ. 48 200. मलयागिरीया वृत्ति पृ. 134 201. आचार्य आत्माराम. म., नंदीसूत्र, पृ. 155 203. सन्मतिप्रकरण टीका पृ. 608 205. ज्ञानबिन्दुप्रकरण, प्रस्तावना पृ. 58 202. मलयगिरिवृत्ति, प्रज्ञापना सूत्र, पद 30 204. गणाधिपति तुलसी, नंदी, पृ. 76 206. डॉ. मोहनलाल मेहता, जैन धर्म-दर्शन एक समीक्षात्मक परिचय, पृ. 295


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