Book Title: Visheshavashyakbhashya ka Maldhari Hemchandrasuri Rachit Bruhadvrutti ke Aalok me Gyanmimansiya Adhyayan
Author(s): Pavankumar Jain
Publisher: Jaynarayan Vyas Vishvavidyalay

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Page 443
________________ [418] विशेषावश्यकभाष्य एवं बृहवृत्ति के आलोक में ज्ञानमीमांसीय अध्ययन पीछे कोई अपेक्षा रही होगी, फिर भी सिद्धान्ततः इन दोनों परम्पराओं में कोई विरोध नहीं है। यदि इनमें विरोध होता तो अवश्य ही कोई न कोई श्वेताम्बर आचार्य इन प्रभेदों का विरोध अथवा खण्डन करते, लेकिन ऐसा खण्डन वर्तमान समय तक दृष्टिगोचर नहीं हुआ है। श्वेताम्बर परम्परा में भी मन:पर्यवज्ञान का विषय मन की ही पर्याय है, जैसेकि ऋजुमति मनःपर्यवज्ञान के जो तीन भेद किये हैं, उनमें सर्वप्रथम दूसरे के मन की पर्याय को जो कि सामान्य (सरल) रूप से चिन्तन की गई, उसको जानकर ही ऋजुमति मन:पर्यवज्ञानी अपने मन में चिन्तन करता है कि इस व्यक्ति ने अमुक प्रकार का चिंतन किया है यह ऋजुमनोगत ज्ञान है। दूसरे के मन की पर्यायों को देखकर उसे वचन द्वारा दूसरे को कहना कि यह व्यक्ति अमुक वस्तु का चिन्तन कर रहा है, यह ऋजुवचनगत ज्ञान है और दूसरे के मन की पर्यायों को देखकर उसे काया की चेष्टा के द्वारा प्रकट करना कि अमुक व्यक्ति इस प्रकार का चिन्तन कर रहा है यह ऋजुकायगत ज्ञान है। इसी प्रकार विपुलमति के छह भेद हैं, उसमें भी दूसरे के मन की पर्यायों के आधार पर प्रथम तीन भेदों में सरल रूप से चिन्तन की गई वस्तु को जानना, कहना और काया से बताना और शेष तीन भेदों में वक्र या कुटिल रूप से चिन्तन की गई वस्तु को जानना, कहना और बताना। इस प्रकार इन प्रभेदों में मुख्य रूप से दूसरे के मन की पर्यायों को ही जाना जाता है और उसी के अनुसार जानना, कहना और काया से बताना होता है। अतः मन:पर्यवज्ञानी का ज्ञान स्वयं के मनोगत रहेगा अथवा दूसरों के लिए वचनगत अथवा कायगत रहेगा। इसलिए श्वेताम्बर परम्परा में ऋजुमति और विपुलमति के प्रभेदों का उल्लेख नहीं किया गया है, लेकिन अर्थान्तर से इनका वर्णन मिल जाता है। मन:पर्यवज्ञानी मन की ही पर्याय का ग्रहण करता है, वचन और काया की नहीं, किन्तु मन में ही वचन और काया से सम्बन्धित जो चिंतन किया गया है, उसे जानता है। इस अपेक्षा से ऋजुमति के तीन और विपुलमति के छह भेद समझे जा सकते हैं। संक्षेप में ऋजुमति तथा विपुलमति मन:पर्ययज्ञान के विषय दो प्रकार के होते हैं - 1. शब्दगत तथा 2. अर्थगत। 1. शब्दगत - जब किसी ने आकर पूछा तो उसके मन की बात मनःपर्यायज्ञानी जान सकता है, यह शब्दगत मन:पर्यवज्ञान हुआ है। 2. अर्थगत - कोई नहीं पूछे तो मौन पूर्वक स्थित हो तो उसके मनोगत विषय को जो मनःपर्यवज्ञानी जानता है, वह अर्थगत मन:पर्यवज्ञान है। इस विषय में से ऋजुमति मन:पर्यवज्ञानी स्पष्ट मन, वचन और काया के शब्दगत और अर्थगत को एवं विपुलमति मन, वचन और काया के स्पष्ट और अस्पष्ट दोनों के शब्दगत और अर्थगत विषय को जानता है। उपर्युक्त भेदों और प्रभेदों का निम्न चार्ट द्वारा दर्शाया गया है। मनःपर्यवज्ञान ऋजमति विपुलमति ऋजुमनोगत ऋजुवचनगत त ऋजुकायगत । ऋजुकायगत। ऋजुमनोगत ऋजुवचनगत ऋजुकायगत अनृजुमनस्कृतार्थज्ञ अनृजुवाक्कृतार्थज्ञ अनृजुकायकृतार्थज्ञ

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