Book Title: Visheshavashyakbhashya ka Maldhari Hemchandrasuri Rachit Bruhadvrutti ke Aalok me Gyanmimansiya Adhyayan
Author(s): Pavankumar Jain
Publisher: Jaynarayan Vyas Vishvavidyalay
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पंचम अध्याय - विशेषावश्यकभाष्य में अवधिज्ञान
[345] ईशान स्वर्गवासी देवों के जघन्य अवधि का प्रमाण ज्योतिषियों के उत्कृष्ट क्षेत्र प्रमाण जितना है तथा उत्कृष्ट अवधि नीचे की ओर रत्नप्रभा के अन्तिम पटल तक है । सनत्कुमार और माहेन्द्र में नीचे की ओर जघन्य रत्नप्रभा के अन्तिम पटल तक और उत्कृष्ट शर्कराप्रभा के अन्तिम पटल तक अवधि का क्षेत्र है। इस प्रकार सभी कल्पवासी देवों का क्षेत्र बताया है। 260 लेकिन इस प्रकार का उल्लेख निर्युक्ति, भाष्य और षट्खण्डागम में नहीं मिलता है। अकलंक ने अवधिज्ञान के तिरछे क्षेत्र का प्रमाण असंख्यात कोटाकोटी योजन का माना है।
परमावधि का कालादि की अपेक्षा ज्ञेय प्रमाण
अकलंक के अनुसार द्रव्य, काल और भाव की दृष्टि से अवधिज्ञानी पहले जिसका जितना क्षेत्र कहा है उतने ही आकाश प्रदेश प्रमाण काल और द्रव्य का जानता है अर्थात् अवधिज्ञानी उतने समय प्रमाण भूत-भविष्य काल को जानता है और उतने भेदवाले अनन्त प्रदेशी पुद्गलस्कन्धों को जानता है। भाव की दृष्टि से अवधिज्ञानी विषयभूत पुद्गल स्कंधों के रूपादि पर्याय और जीव के औदयिक, औपशमिक और क्षायोपशमिक भावों को जानता है । 261
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भाव की अपेक्षा
अवधिज्ञानी जघन्य अनन्तभावों को जानता है। वह प्रत्येक द्रव्य की वर्णादिक (वर्ण, गंध, रस और स्पर्श) पर्यायों को ही जानता है। लेकिन द्रव्य अनन्त होने से उन सब की अनन्त पर्याय होती है। एक द्रव्य की अनन्त पर्यायें होती हैं और अनन्त द्रव्यों की भी अनन्त पर्यायें ही होती हैं। लेकिन अवधिज्ञानी इन सभी पर्यायों का अनन्तवां भाग ही जानता है। वर्णादि में अनन्त प्रकार की तीव्रतामन्दता होते हुए भी अवधिज्ञानी अमुक प्रकार की तीव्रता और मन्दता को ही जानते हैं। अत: वह द्रव्य की अनन्त पर्यायों का जानता है, ऐसा कहा है। जैसे-जैसे अवधिज्ञान की पर्याय बढ़ेगी तब बीच-बीच की तीव्रता-मन्दता को भी जानने लगेगा। जैसे पहले काले वर्ण की 10 गुण पर्याय को जान रहा था, फिर 20 गुण, 30 गुण जानता है, पर्याय बढ़ते-बढ़ते अनन्तगुण पर्याय को भी जानता है । जघन्य अवधि में पर्यायें कम देखता है और उत्कृष्ट अवधि में पर्यायें अधिक देखता है। वर्णादि के हल्के दर्जों में अनन्तगुण बढ़ता है तो शीघ्र पता चल जाता है। लेकिन आगे-आगे जैसे-जैसे घनता बढ़ती जाती है, तो अधिक अन्तर से जान पाता है। जैसे सूर्यास्त होने पर अन्धकार का पता चल जाता है कि अब अंधकार बढ़ रहा है। लेकिन अंधकार बढ़ जाने पर अर्थात् अन्धकार की प्रगाढ़ता होने पर पता नहीं लगता है कि अंधकार अधिक प्रगाढ़ हो रहा है। वैसे ही वर्णादि के बारे में समझना चाहिए। जघन्य - उत्कृष्ट अवधिज्ञान के स्वामी
द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव की अपेक्षा उत्कृष्ट अवधिज्ञान मनुष्यों में ही होता है। जघन्य अवधिज्ञान मनुष्य और तिर्यंच गति में ही होता है, साथ ही मध्यम अवधिज्ञान भी होता है। लेकिन देव और नारकी में मध्यम अवधिज्ञान ही होता है अर्थात् मनुष्य गति में तीनों प्रकार, तिर्यंच गति में दो प्रकार का तथा देव और नारकी में एक ही प्रकार का अवधिज्ञान पाया जाता है। ऐसा ही उल्लेख आवश्यकनिर्युक्ति और षट्खण्डागम में भी प्राप्त होता है। उत्कृष्ट अवधिज्ञान दो प्रकार का होता है। प्रथम संपूर्ण लोक को जानने वाला जो कि प्रतिपाती होता है। दूसरा अलोक में देखने वाला जो किअप्रतिपाती होता है अर्थात् जो संपूर्ण लोक से एक भी प्रदेश अधिक देखता है, वह अवधिज्ञान अप्रतिपाती होता है।262 260. तत्त्वार्थराजवार्तिक 1.21, पृ. 55
261. तत्त्वार्थराजवार्तिक 1.21, पृ. 55
262. विशेषावश्यकभाष्य गाथा 703