Book Title: Visheshavashyakbhashya ka Maldhari Hemchandrasuri Rachit Bruhadvrutti ke Aalok me Gyanmimansiya Adhyayan
Author(s): Pavankumar Jain
Publisher: Jaynarayan Vyas Vishvavidyalay
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________________ पंचम अध्याय - विशेषावश्यकभाष्य में अवधिज्ञान [393] खेलोसहि, जल्लोसहि और सव्वोसहि सभी गुणस्थान में समझी जाती हैं। ग्रन्थों से आमोसादि पांच लब्धियाँ प्रमत्त संयत तक होना ही ध्वनित होता है। अवधिज्ञान के अज्ञान का कारण - 'अवधि' ज्ञान भी है और अज्ञान भी है, क्योंकि मति, श्रुत और अवधि ज्ञानावरणीय कर्म की प्रकृतियों के क्षयोपशम के साथ दर्शन-सप्तक (अनंतानुबन्धी क्रोध, मान, माया और लोभ तथा मिथ्यात्व मोहनीय, मिश्र-मोहनीय और सम्यक्त्व मोहनीय, इन सात प्रकृतियों) का क्षयोपशमादि हुआ हो, तो तीन ज्ञान और दर्शन-सप्तक का क्षयोपशमादि नहीं हुआ हो, तो तीन अज्ञान होते हैं। अज्ञान-दशा में ही वह 'विभंगज्ञान' अथवा अवधि अज्ञान कहलाता है। अवधिज्ञान से सम्बन्धित कुछ विशेषताएं निम्न प्रकार से हैं - 1. गर्भ में रहे हुए तीर्थंकर अवधिज्ञान से अलोक के पर्याय को नहीं देख सकते हैं। अलोक को भी कम-ज्यादा देखने की शक्ति है, किन्तु सभी परम अवधिज्ञान वालों का क्षेत्र समान है। 3. एक पल्योपम में कुछ कम जानने वाला अवधिज्ञानी, सम्पूर्ण लोक को जानता है। 4. कम से कम लोक के और पल्योपम के बहुत से संख्यातवें भागों को जानने वाला अवधिज्ञानी कर्म के द्रव्यों को जान सकता है। 5. परम अवधिज्ञान होने के अंतर्मुहूर्त बाद केवलज्ञान उत्पन्न हो ही जाता है। 6. अंगुल के असंख्यातवें भाग से लेकर हजार योजन की अवगाहना वाले तिर्यंच को अवधिज्ञान हो सकता है, ऐसा प्रज्ञापना सूत्र के पांचवें पद से स्पष्ट होता है। 7. जो मनुष्य परभव से अवधिज्ञान साथ लेकर आता है, वह मध्यम प्रकार का ही होता है। 8. औदारिक में अवधिज्ञान विचित्र प्रकार का होता है। तिर्यंचों का अवधि भवनपति, वाणव्यंतर देवों से अधिक नहीं होता है, फिर भी अल्प स्थिति वाले देवों से तिर्यंचों का अवधि अधिक भी हो तो वे देवों से बड़े नहीं हो जाते हैं। जैसे मनुष्य उड़ नहीं सकता चिड़िया उड़ सकती है। 9. पूर्व-पश्चात् की पर्यायों को भी अवधिज्ञानी जान सकता है। पूर्व-पश्चात् पर्यायें रूपी होती है। नष्ट, अनुत्पन्न होते हुए भी वर्तमान पर्याय के माध्यम से अवधिज्ञानी उन पर्यायों को जान सकते हैं। अवधि से भूत-भविष्यत् काल में होने वाली रूपी द्रव्यों की पर्यायें वर्तमान समय में दृष्टिगोचर हो जाती हैं। 10. विशेषावश्यकभाष्य (गाथा 2593) के अनुसार पांचवें आरे में जम्बूस्वामी के मोक्ष पधारते ही, निम्न बारह प्रकार के बोलों का विच्छेद हो गया है, जो निम्न प्रकार से है - 1. मन:पर्यवज्ञान 2. परमावधिज्ञान 3. पुलाकलब्धि 4. आहारक लब्धि 5. क्षपकश्रेणि 6. उपशमश्रेणि 7. जिनकल्प 8. परिहारविशुद्धि 9. सूक्ष्मसंपराय 10. यथाख्यात चारित्र 11. केवली 12. मुक्ति। प्रश्न यह है कि वर्तमान में अवधिज्ञान, जातिस्मरण आदि ज्ञान का निषेध नहीं होते हुए भी वर्तमान समय में अवधिज्ञान क्यों नहीं होता है? उत्तर में कहा गया है कि वर्तमान में सामान्यतया आज कोई भी अवधिज्ञानी नहीं है। इसका यह कारण है कि चित्त की वैसी एकाग्रता और निर्मलता नहीं है। एकाग्रता और निर्मलता उत्कृष्ट चारित्र में होती है।