Book Title: Visheshavashyakbhashya ka Maldhari Hemchandrasuri Rachit Bruhadvrutti ke Aalok me Gyanmimansiya Adhyayan
Author(s): Pavankumar Jain
Publisher: Jaynarayan Vyas Vishvavidyalay
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________________ वि [384] विशेषावश्यकभाष्य एवं बृहद्वृत्ति के आलोक में ज्ञानमीमांसीय अध्ययन उपुर्यक्त 28 लब्धियों में विशेषावश्यकभाष्य के अनुसार उपुर्यक्त जो वर्णन किया गया है, उनमें से जिनभद्रगणि ने सोलह लब्धियों का तो स्पष्ट रूप से उल्लेख किया है, एवं 17-24 का किसी न किसी रूप में भाष्य में नामोल्लेख किया है, यथा - 1. आमर्ष औषधि 2. विपुडौषधि 3. श्लेष्मौषधि 4. मलौषधि 5. संभिन्नश्रोत लब्धि 6. ऋजुमति लब्धि 7. सौषधि लब्धि 8. चारण लब्धि 9. आशीविष लब्धि 10. केवली लब्धि 11. मन:पर्यवज्ञानी (विपुलमति) लब्धि 12. पूर्वधर 13. अर्हन्त 14. चक्रवर्ती 15. बलदेव 16. वासुदेव 17. क्षीरमधुसर्पिराश्रव लब्धि 18. अक्षीणमहानसी लब्धि 19. कोष्ठकबुद्धि लब्धि 20. पदानुसारी लब्धि 21. बीजबुद्धि लब्धि 22. अवधिलब्धि 23. आहारक लब्धि 24. वैक्रिय लब्धि / शेष चार लब्धियों का वर्णन विशेषावश्यकभाष्य में प्राप्त नहीं होता है, वे हैं - 25. गणधर लब्धि 26. तेजो लेश्या लब्धि 27. शीतलेश्या लब्धि 28. पुलाक लब्धि। विशेषावश्यकभाष्य में स्पष्ट रूप से उल्लिखित लब्धियों के अलावा शेष लब्धियों का स्वरूप निम्न प्रकार से है - 17. क्षीरमधुसर्पिराश्रव लब्धि - जिन साधु के पात्र में आया हुआ लुखा और सूखा आहार भी दूध, घी, शहद आदि की तरह स्वादिष्ट लगे और शरीर में उसकी परिणति दूधादि की तरह पुष्टिकारक होती है, वह क्षीरमधुसर्पिराश्रव लब्धि कहलाती है। 64 अमृताश्रवी, इक्षुरसाश्रवी आदि लब्धियाँ भी इसी प्रकार समझनी चाहिए। 18. क्षीराश्रवादि लब्धियाँ - जिस लब्धि के प्रभाव से वक्ता का वचन, श्रोत को दूध, मधु और घृत के स्वाद की तरह मधुर लगता है, वह क्षीरास्रव लब्धि है। उदाहरण के लिए वज्रस्वामी आदि के वचन सुनने में अति मधुर लगते थे। गन्ने का चारा चरने वाली एक लाख गायों के दूध को उबालकर हजार गायों से प्राप्त हो इतने दूध के बराबर करते हैं, फिर उसको उबाल कर उसका आधा, इस प्रकार घोटते-घोटते क्रमशः आधा करते अन्त में जब एक गाय से प्राप्त दूध के बराबर वह दूध रह जाता है, उससे प्राप्त घी विशिष्ट वर्णादि से युक्त मधुर होता है, उससे भी अधिक मधुर वचन इस लब्धि के प्रभाव से होते हैं। ऐसा दूध और घी मन की संतुष्टि एवं शरीर की पुष्टि करने वाला होता है, वैसे ही इस लब्धि से सम्पन्न आत्मा का वचन, श्रोता के तन-मन को आह्लादित करता है। जो वचन सुनने में श्रेष्ठ और शहद (मधु) के समान मधुर लगे, वह मध्याश्रव लब्धि कहलाती है। जो वचन गन्नों को चरने वाली गायों के घी के समान मीठा लगता है, वह सर्पिराश्रव लब्धि कहलाती है। ___ 19. कोष्ठबुद्धि - कोष्ठक (कोठागार में रहे हुए) धान्य की तरह जिसके सूत्र और अर्थ निरंतर स्मृतियुक्त होने से चिरस्थायी होते हैं, अर्थात् विशिष्ट ज्ञानी के मुखारविन्द से सुना हुआ श्रुतज्ञान जिस बुद्धि में वैसा का वैसा ही सुरक्षित रहे, वह कोष्ठबुद्धि कहलाती है। और उस बुद्धि से युक्त मुनि कोष्ठबुद्धि लब्धिमान् कहलाता है। 20. पदानुसारीबुद्धि - जो सूत्र के एक ही पद से स्वबुद्धि से बहुत श्रुत जानता है अर्थात् जो एक सूत्र-पद का निश्चय करके शेष उससे सम्बन्धित नहीं सुने हुए ज्ञान को भी तद्नुरूप श्रुत का अवगाहन कराती है, वह पदानुसारी बुद्धि कहलाती है और उस बुद्धि से युक्त मुनि पदानुसारी बुद्धि लब्धिमान् कहलाता है। 21. बीजबुद्धि - जो (उत्पाद, ध्रुव और व्यय इत्यादि)एक ही अर्थ प्रधान पद से दूसरे बहुत अर्थ को जानती है अथवा जो एक अर्थ को धारण करके शेष अश्रुत यथावस्थित प्रभूत अर्थों को 464. जैन सिद्धान्त बोल संग्रह भाग 6, पृ. 295-296