Book Title: Visheshavashyakbhashya ka Maldhari Hemchandrasuri Rachit Bruhadvrutti ke Aalok me Gyanmimansiya Adhyayan
Author(s): Pavankumar Jain
Publisher: Jaynarayan Vyas Vishvavidyalay
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तृतीय अध्याय - विशेषावश्यकभाष्य में मतिज्ञान
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3. वासना भी उपचार से ज्ञान रूप है, अत: जिनभद्रगणि के मतानुसार अविच्युति, स्मृति और वासना रूप धारणा का स्वरूप सिद्ध है।
4. धारणा के सम्बन्ध में कतिपय आचार्यों का मत है कि 'अवधारणमेव धारणा' अर्थात् अवधारण ही धारणा है। सद्भूतार्थ-विशेषावधारण ही धारणा है। सद्भूत यानी विवक्षित प्रदेश में विद्यमान वृक्ष आदि पदार्थ विशेष 'यह वृक्ष ही है' इस रूप में अवधारण करना धारणा है। जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण के मन्तव्यानुसार यह उचित नहीं है, क्योंकि व्यतिरेक 'अपाय' और अन्वय 'धारणा' रूप है। इस प्रकार अपाय के दो भेद होने से मतिज्ञान के पांच भेद प्राप्त होंगे। अवग्रह, ईहा, अवाय, धारणा और पांचवें भेद के रूप में स्मृति को स्वीकार करना होगा। अन्यवादी कहते हैं कि हमारे कथन के अनुसार तो व्यतिरेक से होने वाला निश्चय अपाय और अन्वय के आधार पर होने वाला निश्चय धारणा है, इससे मतिज्ञान के चार ही भेद होंगे। अथवा अन्वय और व्यतिरेक का समन्वय अपाय में ही कर लिया जाता है, तो धारणा की आवश्यकता नहीं होने से मतिज्ञान के अवग्रह, ईहा और अपाय ये तीन ही भेद प्राप्त होंगे।
जिनभद्रगणि कहते हैं कि जिस समय 'यह वृक्ष ही है' इस प्रकार का निश्चयात्मक 'अपाय' हुआ उसके बाद भी, अन्तर्मुहूर्त तक 'यह वृक्ष ही है' इस प्रकार अविच्युति (निरन्तरता) रूप अपाय की प्रवृत्ति होती रहती है, वह भी प्रथम प्रवृत्त अपाय के अलावा धारणा है। अतः हमारे मत से भी अविच्युति, वासना और स्मृति रूप धारणा का सद्भाव सिद्ध होता है, इससे मतिज्ञान के चार ही भेद प्राप्त होंगे।
5. धारणा को भी भाव रूप मानना ही होगा, अतः अन्वय और व्यतिरेक के अलावा किया गया सारा निश्चय अपाय रूप ही है, इस अपेक्षा से अविच्युति, स्मृति और वासना रूप धारणा उस अपाय से भिन्न ही है।163
6. अवग्रह के सम्बन्ध में परपक्षी को जाति-भेद इष्ट नहीं है अर्थात् व्यंजनावग्रह और अर्थावग्रह का आपने सामान्य रूप से अवग्रह में ही ग्रहण किया है, वैसे ही हमको (स्वपक्षी) भी धारणा अविच्युति, वासना और स्मृति के रूप से भिन्न स्वीकार नहीं है। हमने भी इन तीनों का समावेश धारणा में ही कर लिया है, इसलिए मतिज्ञान के अवग्रहादि चार भेद ही होंगे। अत: आपके द्वारा मति के छह भेदों (अवग्रह, ईहा, अवाय, अविच्युति, वासना और स्मृति) की जो शंका उठाई है, उसका स्वतः निराकरण हो जाता है। 64 धारणा के भेद
अवाय के द्वारा निर्णय किये गये पदार्थ-ज्ञान को ज्ञान में धारण करना, 'धारणा' है। धारणा के छह भेद हैं - १. श्रोत्रेन्द्रिय धारणा, २. चक्षुरिन्द्रिय धारणा, ३. घ्राणेन्द्रिय धारणा, ४. जिह्वेन्द्रिय धारणा, ५. स्पर्शनेन्द्रिय धारणा तथा ६. अनिन्द्रिय धारणा।।65 धारणा के पर्यायवाची नाम
धारणा के पर्यायवाची पाँच नाम हैं। यथा - 1. धरणा, 2. धारणा, 3. स्थापना, 4. प्रतिष्ठा और 5. कोष्ठ 66 इन पाँचों नामों में से पहला नाम अविच्युति स्वरूप है, दूसरा नाम स्मृति स्वरूप 462. विशेषावश्यकभाष्य, गाथा 185-189 एवं बृहद्वृत्ति का भावार्थ 463. विशेषावश्यकभाष्य, गाथा 190 464. विशेषावश्यकभाष्य, गाथा 191-192 एवं बृहद्वृत्ति का भावार्थ 465. नंदीसूत्र, पृ. 132
466. नंदीसूत्र, पृ. 132