Book Title: Visheshavashyakbhashya ka Maldhari Hemchandrasuri Rachit Bruhadvrutti ke Aalok me Gyanmimansiya Adhyayan
Author(s): Pavankumar Jain
Publisher: Jaynarayan Vyas Vishvavidyalay
View full book text
________________
पंचम अध्याय - विशेषावश्यकभाष्य में अवधिज्ञान
[311]
हाँ
"o"o ho ho ho ho ho ho
ho ko ko ho ho ho ho ho ho ho ke ka ho ke
11.
नहीं
नहीं
नहीं
भवप्रत्यय का संबंध नारकी, देवता से है जिसमें अननुगम, प्रतिपात आदि का प्रश्न ही उपस्थित नहीं होता है। उपर्युक्त वर्णन को हम निम्न चार्ट के आधार पर भी समझ सकते हैं। क्र.सं. भेद अवश्यकनियुक्ति षट्खण्डागम नंदीसूत्र तत्त्वार्थसूत्र
भवप्रत्यय गुणप्रत्यय आनुगामिक अनानुगामिक वर्धमान हीयमान प्रतिपाती अप्रतिपाती अवस्थित
नहीं अनवस्थित
नहीं एकक्षेत्र 12. अनेकक्षेत्र 13. देशावधि नहीं
नहीं 14. परमावधि
नहीं नहीं 15. सर्वावधि
नहीं चौदह निक्षेपों के अनुसार अवधिज्ञान का वर्णन
विशेषावश्यकभाष्य में अवधिज्ञान के अनेक भेद बताए हैं और उनके भेदों का कथन 14 निक्षेपों के द्वारा किया गया है। प्रस्तुत शोधग्रन्थ में विशेषावश्यकभाष्य में कथित 14 निक्षेपों को आधार बनाते हुए अन्य आगम ग्रंथों में जो समानता और भिन्नता प्राप्त होती है उनका यहाँ समीक्षात्मक अध्ययन किया जाएगा। चौदह निक्षेप निम्न प्रकार से हैं - 1. अवधि, 2. क्षेत्रपरिमाण, 3. संस्थान, 4. आनुगामिक, 5. अवस्थित, 6. चल, 7. तीव्रमंद, 8. प्रतिपाति-उत्पाद, 9. ज्ञान, 10. दर्शन, 11. विभंग, 12. देश, 13. क्षेत्र और 14. गति। इन चौदह द्वारों के बाद ऋद्धि को पंद्रहवें द्वार के रूप में जिनभद्रगणि ने स्वीकार किया है।104 जिनभद्रगणि ने चौदह निक्षेप के संबंध में प्राप्त मतांतरों का उल्लेख निम्न प्रकार से किया है -
आवश्यकनियुक्ति में उपर्युक्त चौदह द्वारों से अवधिज्ञान का वर्णन किया है, लेकिन बाद के कुछ आचार्यों का ऐसा मानना था कि यहाँ अवधि की विचारणा होने से अवधि पद मूल है। इसलिए उन्होंने पीछे के तेरह द्वारों को ही स्वीकार किया है और नियुक्ति के 14 द्वारों की संगति बिठाने के लिए अनानुगामिक द्वार को अलग गिनकर 14 द्वार माने हैं एवं कुछ आचार्य अवधि नामक इस पहले निक्षेप को स्वीकार ही नहीं करते हैं - 1. क्षेत्र परिमाण 2. संस्थान 3. आनुगामिक 4. अननुगामी एवं 5 से 14 तक के निक्षेप उपर्युक्तानुसार ही स्वीकार करते हैं। जिनभद्रगणि ने आवश्यकनियुक्ति में जो चौदह निक्षेप बताये हैं, उनके अनुसार ही अवधिज्ञान का वर्णन किया है। 104. विशेषावश्यकभाष्य, गाथा 577-578-579 105. विशेषावश्यकभाष्य, गाथा 579-580