Book Title: Visheshavashyakbhashya ka Maldhari Hemchandrasuri Rachit Bruhadvrutti ke Aalok me Gyanmimansiya Adhyayan
Author(s): Pavankumar Jain
Publisher: Jaynarayan Vyas Vishvavidyalay

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Page 340
________________ पंचम अध्याय - विशेषावश्यकभाष्य में अवधिज्ञान [315] अवगाहना में उत्पन्न होना इसलिए बताया है कि यदि वह जीव अन्यत्र दूर जाकर उत्पन्न होता है तो उत्पत्ति क्षेत्र में विग्रह गति से जायेगा, जिससे आत्मप्रदेशों का कुछ विस्तार होगा और उसकी अवगाहना मोटी हो जायेगी। इस कारण से जीव अविग्रहगति से स्वयं के शरीर में उत्पन्न होता है। 17 सभी जीवों में सबसे छोटी से छोटी अवगाहना सूक्ष्म पनक के जीव की होती है इसलिए यहाँ पनक जीव लिया गया है। तीन समय का आहार ग्रहण किये हुए जीव को लेने का कारण यह है कि जीव पहले और दूसरे समय में अति सूक्ष्म तथा चौथे आदि समय में जघन्य अवधि क्षेत्र से बड़ा हो जाता है इसलिए तीसरे समय में जितनी अवगाहना उस जीव की होती है उतना ही जघन्य अवधिज्ञान का क्षेत्र होता है।18 समीक्षा जिनभद्रगणि और मलधारी हेमचन्द्र के उपर्युक्त वर्णन से यह मन्तव्य प्रकट होता है कि सूक्ष्म पनक जीव की जघन्य अवधिज्ञान के क्षेत्र के योग्य जो जघन्य अवगाहना होती है, वह 1000 योजन वाले मत्स्य में उत्पन्न होने पर ही होती है, क्योंकि उसी जीव में तीव्र प्रयत्न से संकोच होता है। किन्तु यह कथन आगम के अनुकूल नहीं है, क्योंकि भगवती सूत्र शतक 1 उद्देशक 5 में क्रोधी, मानी के भंगों में वनस्पति के जीवों में जघन्य अवगाहना को भी शाश्वत बताया है। जबकि उत्पन्न होने वाला मत्स्य त्रस जीव है और प्रज्ञापना सूत्र के छठे पद में त्रस जीवों की उत्पत्ति का विरह (अन्तर) बताया है। इससे स्पष्ट होता है कि अन्य जीव भी आकर जघन्य अवगाहना बना सकते हैं। जैसे कि कोई जीव निगोद पनक के रूप में उत्पन्न होने के लिए तीन समय की विग्रहगति से आ रहा है तो उसकी भी उत्पत्ति के समय जघन्य अवगाहना हो सकती है अथवा तीसरे समय में पहुँचकर आहार ग्रहण करके पांचवें समय में तो वह जीव तीन समय का आहारक बन जायेगा। उसकी अवगाहना भी जघन्य अवधि जितनी हो सकती है, ऐसी भी एक धारणा है। इसी प्रकार शरीर से बाहर ऋजुगति से उत्पन्न होने वाले के कुछ आत्मप्रदेश तो उत्पत्ति स्थान पर पहुँच गये, किन्तु अभी तक अवगाहना पूर्वभव के अनुसार ही रहती है। नये भव के अवगाह क्षेत्र में अवगाढ़ नहीं हुआ है, आहारक भी हो गया है, किन्तु अभी तक आत्मप्रदेश विश्रेणी में हैं, अत: उत्पत्ति क्षेत्र में अवगाढ़ होने से ऋचगति वाले को भी तीन समय लग जायेंगे, क्योंकि पूर्वभव की अवगाहना के सारे प्रदेश एक सीध में नहीं होते हैं और संकोच अगले भव में होने के कारण तीसरे समय में जघन्य अवधि क्षेत्र जितनी अवगाहना हो सकती है। मतान्तर जिनभद्रगणि ने इस सम्बन्ध में प्राप्त दो मतों का उल्लेख करके खण्डन किया है। प्रथम मत - कतिपय आचार्य सूक्ष्मपनक जीव अवगाहना संकोच की क्रिया मत्स्य के भव अर्थात् पूर्वभव में ही करता है अर्थात् पूर्वभव में दो समयों में मौटाई-चौड़ाई का संकोच मानकर तीसरे समय में अर्थात् नये भव के प्रथम समय में लम्बाई का संकोच और उत्पत्ति समय का आहार साथ होने से अविग्रह गति उत्पन्न पनक जीव तीन समय का आहारक कहलाता है। समाधान - यहाँ अवगाहना संकोच की क्रिया वर्तमान भव (मत्स्य के भव) में करना बताया है, वह भी आगम से विरुद्ध है, क्योंकि भगवतीसूत्र शतक 5 उद्देशक 3 में एक साथ दो भव के आयुष्य वेदन (विपाकोदय) का निषेध किया है। इसलिए आगमानुसार जब तक वर्तमान भव का आयुष्य समाप्त नहीं होगा तब तक परभव (सूक्ष्म निगोद के भव) के आयुष्य का उदय नहीं होगा और आयुष्य के 117. विशेषावश्यकभाष्य गाथा 592-594 118. विशेषावश्यकभाष्य गाथा 595

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