Book Title: Visheshavashyakbhashya ka Maldhari Hemchandrasuri Rachit Bruhadvrutti ke Aalok me Gyanmimansiya Adhyayan
Author(s): Pavankumar Jain
Publisher: Jaynarayan Vyas Vishvavidyalay
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चर्तुथ अध्याय - विशेषावश्यकभाष्य में श्रुतज्ञान
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चौदह पूर्वो की पद संख्या एवं वस्तुएँ
श्वेताम्बर साहित्य में चौदह पूर्व जो की वस्तु है, उन्हीं को दिगम्बर साहित्य में अर्थाधिकार कहा जाता है। दोनों परम्परा में मान्य पूर्वो के पदों का परिमाण निम्न प्रकार से है। पूर्व का नाम श्वेताम्बर में दिगम्बर में श्वे० में वस्तु दि० में अर्थाधिकार
पदों की संख्या पदों की संख्या की संख्या की संख्या 1. उत्पाद पूर्व 1 करोड़ पद 1 करोड़ पद 10 2. अग्रायणीय पूर्व 96 लाख
96 लाख
14 3 वीर्यप्रवाद पूर्व 70 लाख
70 लाख 4. अस्तिनास्तिप्रवादपूर्व 60 लाख
60 लाख 5. ज्ञानप्रवाद पूर्व एक कम 1 करोड़ एक कम 1 करोड़ 12 6. सत्यप्रवाद पूर्व छह अधिक 1 करोड़ छह अधिक 1 करोड़ 2 7. आत्मप्रवाद पूर्व 26 करोड़
26 करोड़ 16 8. कर्मप्रवाद पूर्व 1 करोड़ 80 सहस्र 1 करोड़ 80 सहस्र 30 9. प्रत्याख्यान प्रवाद पूर्व 84 लाख
84 लाख 10. विद्यानुप्रवाद पूर्व 1 करोड़ 10 लाख 1 करोड़ 10 लाख 15 11. अवन्ध्य पूर्व 26 करोड़
26 करोड़ 12 12. प्राणायु पूर्व 1 करोड़ 56 लाख 13 करोड़ 13 13. क्रियाविशाल पूर्व 9 करोड़
9 करोड़
30 14. लोकबिन्दुसार पूर्व 12 करोड़ 50 लाख 12 करोड़ 50 लाख 25 10 कुल पद/ वस्तुएँ 83,28,80,005 95,50,00,005 225
195 (83 करोड़ 28 लाख 80 हजार 5) (95 करोड़ 50 लाख 5)
श्वेताम्बर परम्परा मान्य पूर्वो के पदों की संख्या को अभिधान राजेन्द्र कोष के आधार पर उल्लिखित किया गया है। प्रवचनसारोद्धार97 में वर्णित पूर्व के पदों की संख्या में जो-जो अन्तर है, वह इस प्रकार है - पहले पूर्व के ग्यारह करोड़, सातवें पूर्व के छत्तीस करोड़ तथा दसवें पूर्व के पदों की संख्या एक करोड़ पन्द्रह लाख बताई है, शेष पूर्वो के पदों की संख्या अभिधान राजेन्द्र कोष और प्रवचनसारोद्धार में समान है। नंदीचूर्णि में चूर्णि वर्णित पदों की संख्या अभिधान राजेन्द्र कोष के समान है। 4. अनुयोग
मूल विषय के साथ अनुरूप या अनुकूल सम्बन्ध वाला विषय जिस शास्त्र में हो, उसे 'अनुयोग' कहते हैं। अनुयोग के दो भेद हैं - 1. मूल प्रथमानुयोग और 2. गंडिकानुयोग 193 मूल प्रथम अनुयोग
धर्म तीर्थ का प्रवर्तन करने वाले धर्म के 'मूल' तीर्थंकरों ने जिस भव में सम्यक्त्व प्राप्त किया, उस प्रथम भव से लेकर यावत् मोक्ष प्राप्ति पर्यन्त का, पूर्वगत से सम्बन्ध रखने वाले चरित्र जिसमें हो, उसे 'मूल प्रथम अनुयोग' कहते हैं। 389. कसायपाहुड, पृ. 138 390, अभिधान राजेन्द्र कोष भाग 5. पृ. 1062
391. प्रवचनसारोद्धार भाग 1, पृ. 394 392. नंदीचूर्णि, पृ. 111-112
393. नंदिसूत्र पृ. 198-200