Book Title: Visheshavashyakbhashya ka Maldhari Hemchandrasuri Rachit Bruhadvrutti ke Aalok me Gyanmimansiya Adhyayan
Author(s): Pavankumar Jain
Publisher: Jaynarayan Vyas Vishvavidyalay
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विशेषावश्यकभाष्य एवं बृहद्वृत्ति के आलोक में ज्ञानमीमांसीय अध्ययन
गण्डिकानुयोग
ईख आदि के शिखर भाग और मूलभाग को तोड़ कर, ऊपरी छिलकों को छीलकर, मध्य की गाँठों को हटाकर, जो छोटे-छोटे समान खण्ड बनाये जाते हैं, उन्हें 'गण्डिका' (गण्डेरी) कहते हैं । उस गण्डिका के समान जिस शास्त्र में अगले - पिछले विषम अधिकार से रहित, मध्य के समान अधिकार वाले विषय हों, उसे 'गण्डिका अनुयोग' कहते हैं ।
दिगम्बर साहित्य में यह दृष्टिवाद का तीसरा भेद है। प्रथम अर्थात् मिथ्यादृष्टि, अव्रती या अव्युत्पन्न व्यक्ति के लिए जो अनुयोग रचा गया, वह प्रथमानुयोग है । इसमें चौबीस तीर्थकर, बारह चक्रवर्ती, नौ बलदेव, नौ वासुदेव, नौ प्रतिवासुदेव इन 63 शलाका प्राचीन पुरुषों का वर्णन किया जाता है। धवला पुस्तक 1 और 9 में बारह पुराणों का उल्लेख किया गया है। तीर्थंकरों का, चक्रवर्तियों का, विद्याधरों का, नारायणों का, प्रतिनारायणों का, चारणों का, प्रज्ञाश्रमणों का वंश, कुरुवंश, हरिवंश, इक्षाकुवंश, काश्यपवंश, वादियों का वंश और नाथवंश का का वर्णन है । 394 इसमें पांच हजार (5000 ) पद हैं 1395
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5. चूलिका
ग्रंथ के मूल प्रतिपाद्य विषय की समाप्ति के पश्चात् ग्रंथ के अन्त में जो ग्रंथित किया जाता हैं, उसे 'चूलिका' कहते हैं । इसमें या तो ग्रंथ में कही हुई बातें ही विशेष विधि से दोहरायी जाती हैं या मूल प्रतिपाद्य विषय के सम्बन्ध में जो कथन शेष रह गया हो, वह कहा जाता है। पहले उत्पाद पूर्व की 4, दूसरे अग्रायणीय पूर्व की 12, तीसरे वीर्यप्रवाद पूर्व की 8 और चौथे अस्तिनास्तिप्रवाद पूर्व की 10 चूलिका वस्तु कही है। इस प्रकार कुल चूलिका वस्तुएँ 34 होती हैं। शेष दस पूर्वों की चूलिका वस्तुएँ नहीं हैं ।
दिगम्बर साहित्य में चूलिका के पांच भेद हैं- जलगता, स्थलगता, मायागता, आकाशगता और रूपगता। इनकी पदसंख्या और विषय का वर्णन धवला एवं गोम्मटसार में विस्तार से किया गया है । 396 दृष्टिवाद के पांचों पदों को मिलाने पर कुल पद दस करोड़ उनचास लाख छियालीस हजार (104946000 ) है 397
श्वेताम्बर साहित्य में दृष्टिवाद के पाँच भेदों में से केवल पूर्व के पदों की संख्या का उल्लेख है, यथा दृष्टिवाद में 832680005 ( 83 करोड़ 26 लाख 80 हजार 5) पद हैं, लेकिन दिगम्बर साहित्य में परिकर्म, सूत्र, प्रथमानुयोग, पूर्वगत और चूलिका इन पांचों के पदों की संख्या का उल्लेख है, जो कि निम्न प्रकार से है - परिकर्म के पांचों भेदों की कुल पद संख्या एक करोड़ इक्यासी लाख पांच हजार (18105000), सूत्र में कुल पद अठासी लाख ( 8800000 ), प्रथमानुयोग के कुल पद पांच हजार (5000), पूर्वगत (चौदहपूर्वी में) के कुल पद पंचानवें करोड़ पचास लाख पांच (955000005), पांच चूलिका के कुल पद दस करोड़ उनचास लाख छियालीस हजार (104946000) है। इन पांचों के पदों को जोड़ने पर दिगम्बर परम्परा में दृष्टिवाद के कुल पदों की संख्या (1086856005) प्राप्त होती है। पूर्व में वर्णित आचारांग आदि ग्यारह अंगों के कुल पदों की 41502000 संख्या है। इन दोनों को मिलाने पर बारह अंगों में कुल पदों की 112835805 संख्या प्राप्त है 399
394. धवलापुस्तक पु. 1, सू. 1.1.2 पृ. 112, धवला पु. 9, सू. 4.1.45 पृ. 209
395. गोम्मटसार जीवाकांड गाथा 363-364 पृ. 603
396. धवला पु. 1, सू. 1.1.2, पु. 113, धवला पु. 9, सू. 4.1.45, पु. 210, गोम्मटसार गाथा 361-362 पृ. 602
397. गोम्मटसार जीवकांड गाथा 363-364 पृ. 604 398. गोम्मटसार जीवकांड गाथा 363-364 पृ. 603-604
399. कसायपाहुड पृ. 85-87