Book Title: Visheshavashyakbhashya ka Maldhari Hemchandrasuri Rachit Bruhadvrutti ke Aalok me Gyanmimansiya Adhyayan
Author(s): Pavankumar Jain
Publisher: Jaynarayan Vyas Vishvavidyalay
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चर्तुथ अध्याय - विशेषावश्यकभाष्य में श्रुतज्ञान
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अक्षरश्रुत के प्रकार
नंदीसूत्र में अक्षरश्रुत के तीन भेद हैं - १. संज्ञाक्षर (लिपि) २. व्यंजनाक्षर (अक्षर-भाषा) तथा ३. लब्ध्यक्षर (लिपि, भाषा और वाच्यपदार्थ का ज्ञान)। जिनभद्रगणि, हरिभद्र, मलयगिरि और यशोविजयजी ने नंदीसूत्र के समान ही उल्लेख किया है। जबकि जिनदासगणि ने अक्षर श्रुत के 1. ज्ञानाक्षर, 2. अभिलापाक्षर 3. वर्णाक्षर ये तीन भेद किये हैं। मलयगिरि ने अक्षर श्रुत के लब्ध्यक्षर
और वर्णाक्षर ये दो भेद करके संज्ञाक्षर और व्यंजनाक्षर का समावेश वर्णाक्षर में किया है। लब्ध्यक्षर भावश्रुत रूप है तथा संज्ञाक्षर और व्यंजनाक्षर द्रव्यश्रुत रूप होने से नंदीचूर्णिगत भेद भी उचित है। 1. संज्ञा अक्षरश्रुत
नियत अक्षर के आकार को संज्ञाक्षर कहते हैं। अक्षरों के संस्थान-आकृति को अर्थात् लिपि को 'संज्ञाक्षर' कहते हैं।"
संज्ञा शब्द के अनेक अर्थ होते हुए भी यहाँ संकेत अर्थ में संज्ञा शब्द का ग्रहण किया गया है। अक्षर के जिस संस्थान (आकृति) में जिस अर्थ के संकेत की स्थापना की जाती है, वह अक्षर उसी संकेत के अनुसार अर्थ का ज्ञान करता है अर्थात् पट्टी, पत्र, पुस्तक, पत्थर, धातु आदि पर लिखित निर्मित 'अ' 'क' आदि अक्षरों की आकृति को 'संज्ञाक्षर' कहते हैं, क्योंकि वह आकृति 'अ' 'क'
आदि के जानने में निमित्तभूत है। लोग भी उसे 'अ' 'क' आदि रूप में ही व्यवहार में लाते हैं। इसलिए अकार आदि अक्षरों को संज्ञाक्षर कहा गया है। हंसलिपि आदि अठारह प्रकार की लिपियों से सम्बद्ध अक्षरों का आकार संज्ञाक्षर है। जैसे अर्धचन्द्राकार टकार, घटाकार ठकार, वज्राकार वकार ।
मलयगिरि ने नंदीवृत्ति में कहा है कि - पट्टिका आदि पर संस्थापित अक्षर की संस्थानाकृति संज्ञाक्षर कहलाती है। वह संस्थान ब्राह्मीलिपि आदि से अनेक प्रकार का है। जैसे नागरी लिपि में मध्य में स्फाटित चूल्हे के समान रेखा वाला णकार। कुत्ते की टेढ़ी पूंछ की आकृति वाला ढकार।
संज्ञा अक्षर अर्थात् लिपियों के प्राचीन काल में अनेक भेद थे। जैसे-1. ब्राह्मी लिपि, 2. यवन लिपि, 3. अंक लिपि, 4. गणित लिपि आदि। वर्तमान में भी हिन्दी, गुजराती, पंजाबी, तमिल आदि कई भेद पाये जाते हैं। लिपि के अठारह प्रकार
मलधारी हेमचन्द्र ने बृहद्वृत्ति में मुख्य रूप से लिपि के अठारह भेद बताये हैं - 1. हंसलिपि 2. भूतलिपि 3. यक्षी 4. राक्षसी 5. उड़िया 6. यवनानी 7. तुरुष्की 8. कीरी 9. द्राविड़ी 10. सैन्धवी 11. मालविनी 12. नटी 13. नागरी 14. लाट 15. पारसी 16. अनिमित्ती 17. चाणक्यी 18. मूलदेवी। उक्त अठारह प्रकार की लिपि के भेद से नियत अक्षराकार रूप संज्ञा अक्षर है। वैसे संज्ञाक्षर लिपि के अनेक भेद होते हैं। जैसे कि अर्द्धचन्द्राकार टकार होता है, किसी लिपि में घटाकार ठकार होता है, इस 82. नंदीसूत्र पृ. 146 83. विशेषावश्यकभाष्य, गाथा 464, हारिभद्रीय पृ. 71, मलयगिरि पृ. 187, जैनतर्कभाषा पृ. 22 84. वत्थ अक्खरं तिविहं-नाणक्खरं, अभिलावक्खरं, वण्णक्खरं च। - नंदीचूर्णि, पृ. 71 85. मलयगिरि पृ. 188 86. '...निययं सण्णक्खरमक्खरागारो। (निययं संज्ञाक्षरमक्षराकारः।)' - विशेषावश्यकभाष्य गाथा 464 87. सण्णक्खरं अक्खरस्स संठाणागिई। - नंदीसूत्र पृ. 146
88. नंदीचूर्णि, पृ.71 89. आवश्यकचूर्णि भाग 1 पृ. 26
90. मलयगिरि, नंदीवृत्ति, पृ. 188