Book Title: Visheshavashyakbhashya ka Maldhari Hemchandrasuri Rachit Bruhadvrutti ke Aalok me Gyanmimansiya Adhyayan
Author(s): Pavankumar Jain
Publisher: Jaynarayan Vyas Vishvavidyalay
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________________ तृतीय अध्याय विशेषावश्यकभाष्य में मतिज्ञान पूर्व अध्याय में ज्ञान के सम्बन्ध में सामान्य उल्लेख किया गया है। प्रस्तुत अध्याय में ज्ञान के पांच भेदों में प्रथम भेद मतिज्ञान का विशिष्ट वर्णन किया जा रहा है। जो ज्ञान जीव को इन्द्रिय एवं मन अथवा मात्र इन्द्रिय की सहायता से होता है, वह मतिज्ञान कहलाता है। बुद्धि से होने वाला ज्ञान भी मतिज्ञान कहलाता है। पूर्वजन्म का ज्ञान भी मतिज्ञान के अन्तर्गत ही समाविष्ट होता है। मतिज्ञान का विवेचन जैन आगम एवं व्याख्या ग्रंथों में विस्तार से प्राप्त होता है, उसी की समीक्षात्मक प्रस्तुति यहाँ की जा रही है। मतिज्ञान का स्वरूप अनुयोगद्वार सूत्र में मतिज्ञान के लिए 'आभिनिबोधिक' शब्द का प्रयोग किया गया है। आभिनिबोधिकज्ञान में 'आभिनिबोधिक' शब्द इन्द्रिय और मन से उत्पन्न होने वाले विशिष्ट ज्ञान का तथा 'ज्ञान' शब्द सामान्य ज्ञान का बोधक है। मति शब्द को आभिनिबोधिक का पर्याय समझना चाहिए। आभिनिबोधिक ज्ञान को ही औत्पत्तिकी मति आदि की प्रधानता के कारण मति (ज्ञान) भी कहा जाता है।' श्वेताम्बराचायों के अनुसार मतिज्ञान की परिभाषा तत्त्वार्थसूत्र में उमास्वाति (तृतीय शती) ने कहा है कि जिस ज्ञान में इन्द्रिय और मन की सहायता की अपेक्षा रहती है, वह मतिज्ञान है अथवा इन्द्रिय तथा मन के निमित्त से शब्द, रस, स्पर्श, रूप और गन्धादि विषयों में अवग्रह, ईहा, अवाय तथा धारणा रूप से जो ज्ञान होता है, वह मति ज्ञान है। जिनभद्रगणि (सप्तम शती) ने विशेषावश्यकभाष्य में उल्लेख किया है कि अर्थाभिमुख होते हुए जो नियत अर्थ ज्ञान है, वह आभिनिबोध है। वही आभिनिबोधिक ज्ञान है। बोध का अर्थ ज्ञान, अर्थ का मतलब है जो प्राप्त किया जाय अर्थात् जाना जाए। अभि उपसर्ग का उपयोग सामर्थ्य अर्थ में हआ है। निबोध में नि उपसर्ग निश्चयात्मक अर्थात् अर्थ-बल से उत्पन्न होने के कारण बिना किसी व्यवधान के उत्पन्न होने वाला निश्चयात्मक ज्ञान। बृहत्कल्पभाष्य के अनुसार - प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष विषय की तर्कणा कर जो निश्चयपूर्वक जानता है, वह ज्ञान अर्थ के प्रति अभिमुख होने के कारण आभिनिबोधिक ज्ञान है। जिनदासगणि (सप्तम शती) ने नंदीचूर्णि में कहा है कि अर्थ (इन्द्रिय विषय) की अभिमुखता और नियत बोध वह अभिनिबोध है, इससे होने वाला ज्ञान आभिनिबोधिकज्ञान है। आवश्यकचूर्णि के अनुसार - जो अभिमुख अर्थ को जानता है, विपरीत अर्थ को नहीं जानता, वह आभिनिबोधिक है। अभिमुख अर्थ का आशय है - सामने दिखाई देने वाले पदार्थ का सही बोध 1. मलधारी हेमचन्द्र गाथा 85 की टीका 2. तदिन्द्रियोऽनिन्द्रियनिमित्तम् - तत्त्वार्थसूत्र 1.14, 3. अवग्रहेहावायधारणाः। - तत्त्वार्थसूत्र 1.15 4. विशेषावश्यकभाष्य गाथा 80 5. बृहत्कल्पभाष्य, गाथा 39 6. अत्थाभिमुहो णियतो बोधो अभिनिबोधः, स एव स्वार्थिकप्रत्ययोपादानादाभिनिबोधिकम्। - नंदीचूर्णि पृ. 20