Book Title: Visheshavashyakbhashya ka Maldhari Hemchandrasuri Rachit Bruhadvrutti ke Aalok me Gyanmimansiya Adhyayan
Author(s): Pavankumar Jain
Publisher: Jaynarayan Vyas Vishvavidyalay
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________________ [134] विशेषावश्यकभाष्य एवं बृहद्वृत्ति के आलोक में ज्ञानमीमांसीय अध्ययन श्रुत अक्षरलाभ है, वह श्रुत है और जो अनक्षर है वह मतिज्ञान माना जाये तो (सभी अनक्षर ज्ञान को मति मानने से) ईहा आदि सभी का मतित्व घटित नहीं होगा। उत्तरपक्ष - इस दोष के निवारण के लिए निर्विवाद रूप से श्रुतानुसारी होने वाला अक्षरलाभ ही श्रुत है, वह किसी भी इन्द्रिय से हो तथा शेष मतिज्ञान है, जो कि पांचों इन्द्रिय और मन से होता है लेकिन श्रुतानुसारी नहीं होता है। ऐसा स्वीकार करना होगा।17 जिनदासगणि और हरिभद्र ने इस सम्बन्ध में विशेष उल्लेख नहीं किया जबकि मलयगिरि ने जिनभद्रगणि का समर्थन किया है। 18 वस्तुतः जो श्रुतानुसारी ज्ञान है, वह श्रोता और वक्ता के लिए श्रुतज्ञान है और जो श्रुत के स्वरूप से रहित है, वह दोनों के लिए मतिज्ञान है। अकलंक ने भी ऐसा ही उल्लेख किया है। तत्त्वार्थवार्तिक में वे प्रश्न करते हैं कि ईहा आदि ज्ञान में भी श्रुत का व्यपदेश प्राप्त होता है, क्योंकि वे भी मन के निमित्त से उत्पन्न होते हैं। इसके उत्तर में वे कहते हैं कि ऐसा नहीं है, क्योंकि वे मात्र अवग्रह के द्वारा गृहीत पदार्थ को जानते हैं, जबकि श्रुतज्ञान अपूर्व अर्थ को विषय करता है।19 यद्यपि ईहा मतिज्ञान और श्रुतज्ञान दोनों ही मन से होते हैं, किन्तु जिस प्रकार मन को ईहा ज्ञान का निमित्त प्राप्त होता है वैसा श्रुतज्ञान को प्राप्त नहीं होता है। 120 द्रव्यश्रुत और भावश्रुत का स्वरूप आचारांग आदि बारह अंग, उत्पाद पूर्व आदि चौदह पूर्व और सामायिकादि चौदह प्रकीर्णक स्वरूप द्रव्यश्रुत जानना, और इनके सुनने से उत्पन्न हुआ ज्ञान भावश्रुत कहलाता है। जिनभद्रगणि के अनुसार - 1. श्रुतोपयोग के साथ जिन पदार्थों को वक्ता बोलता है, वह द्रव्यश्रुत व भावश्रुत दोनों रूप होता है, जिन्हें उपयोग रहित होकर बोलता है, वह शब्दमात्र होने से द्रव्यश्रुत है, और जिन्हें श्रुत-बुद्धि से केवल पर्यालोचित ही करता है, बोलता नहीं हैं, वह भावश्रुत है।21 2. जो ज्ञान श्रुत का अनुसरण करके इन्द्रिय और मन का निमित्त मिलने पर अपने अर्थ को कहने में समर्थ है, वह भावश्रुत है। 122 ____ 3. भावश्रुत मतिपूर्वक होता है। द्रव्यश्रुत उसका लक्षण है। द्रव्यश्रुत भावश्रुत से उत्पन्न होता है। पहले भावश्रुत से चिंतन किया जाता है, तत्पश्चात् उसे शब्द से प्रकट किया जाता है। अतः द्रव्यश्रुत से भावश्रुत लक्षित होता है।23 4. श्रुत के उपयोग से निरपेक्ष/अनुपयुक्त वक्ता आगमतः द्रव्यश्रुत है। श्रुत में उपयुक्त श्रुत का अध्येता आगमतः भावश्रुत है, क्योंकि वह श्रुतोपयोग से अभिन्न होता है। 24 मलधारी हेमचन्द्र के अनुसार - श्रुतबुद्धि से प्रथमतः दृष्ट (गृहीत) पदार्थों को, जब उपयोग रहित होकर अभ्यास से वक्ता बोलता है, तो वह द्रव्यश्रुत होता है। जिन्हें वक्ता श्रुतबुद्धि से देखता है और मन से स्फुरित होने पर भी नहीं बोलता है, वह भावश्रुत है।25 नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती के कथनानुसार - पुद्गलद्रव्यस्वरूप अक्षर पदादिक रूप से द्रव्यश्रुत है, और उनके सुनने से श्रुतज्ञान की पर्यायरूप उत्पन्न हुआ ज्ञान भावश्रुत है।126 117. विशेषावश्यकभाष्य, गाथा 124-126 118. नंदीचूर्णि पृ. 51, हारिभद्रीय पृ. 53, मलयगिरि पृ. 142 119. तत्त्वार्थराजवार्तिक 1.9.32 पृ. 35 120. नानिंद्रियानिमित्त्वादीहनश्रुतयोरिह। तादात्म्यं बहुवेदत्वाच्छुतस्येहाव्यपेक्षया। - तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक 1.9.31 121. विशेषावश्यकभाष्य, गाथा 129 122. विशेषावश्यकभाष्य, गाथा 100 123. विशेषावश्यकभाष्य, गाथा 112-113 124. विशेषावश्यकभाष्य, गाथा 877-878 125. विशेषावश्यकभाष्य, गाथा 128 की टीका 126, गोम्मटसार जीवकांड गाथा 348-349