Book Title: Visheshavashyakbhashya ka Maldhari Hemchandrasuri Rachit Bruhadvrutti ke Aalok me Gyanmimansiya Adhyayan
Author(s): Pavankumar Jain
Publisher: Jaynarayan Vyas Vishvavidyalay
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तृतीय अध्याय
विशेषावश्यक भाष्य में मतिज्ञान
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'कुक्कुट' का उदाहरण दिया है, जिसमें प्रतिबिम्ब का सामान्य ग्रहण अवग्रह, उसका अन्वेषण करना ईहा, दर्पण में गिरता हुआ प्रतिबिम्ब उपयोगी है, ऐसा निर्णय करना अवाय है, इत्यादि ।
शंका - आगम में तो मतिज्ञान के श्रुतनिश्रित और अश्रुतनिश्रित भेदों का स्पष्ट उल्लेख है इस प्रकार समावेश करने पर उसकी संगति कैसे बैठेगी ? इस का समाधान यह है कि अवग्रहादि सामान्य धर्म की अपेक्षा से अश्रुतनिश्रित का समावेश श्रुतनिश्रित में किया है, जबकि श्रुतनिश्रित और अश्रुतनिश्रित का जहाँ विचार किया जाएगा वहाँ विशिष्ट धर्म की अपेक्षा श्रुतनिश्रित और अश्रुतनिश्रित को अलग-अलग रूप में स्वीकार किया है। इस प्रकार संगति बिठाने पर आगम से कोई विरोध नहीं आएगा। क्योंकि वस्तु में समान धर्म से समानता और भिन्न धर्मों से भिन्नता सिद्ध ही है । अवग्रहादि की समानता से अश्रुतनिश्रित का श्रुतनिश्रित में समावेश कर श्रुतनिश्रित मतिज्ञान के 28 भेद मानना आगमानुसार संगत है, लेकिन व्यंजनावग्रह को छोड़कर श्रुतनिश्रित और अश्रुतनिश्रित के 28 भेद करना उचित नहीं है। क्योंकि आगम में भी भेद पूर्वक श्रुतनिश्रित कहने के बाद ही अश्रुतनिश्रित का उल्लेख है 65
जिनभद्रगणि के अनुसार श्रुतनिश्रित मति के अवग्रह आदि 28 भेदों के बहु-अबहु, बहुविध - अबहुविध, क्षिप्र-अक्षिप्र, अनिश्रित - निश्रित, निश्चित - अनिश्चित, ध्रुव - अध्रुव- ये बारह भेद होते हैं । आभिनिबोधिक ज्ञान के उपर्युक्त 28 भेदों को इन बारह भेदों से गुणित करने पर (28×12=336) तीन सौ छत्तीस भेद होते हैं। इसमें अश्रुतनिश्रित चार बुद्धियाँ मिलाने से मतिज्ञान के 336+4=340 भेद होते हैं । तत्त्वार्थसूत्र परम्परा में धारणा के अन्तर्गत आने वाला जातिस्मरण, पृथक् करके सम्मिलित किया जाये तो 340 + 1 = 341 भेद होते हैं। षट्खण्डागम के अनुसार मतिज्ञान के भेद
षट्खण्डागम के सूत्र 5.5.22 में 4, 24, 28 और 32 भेदों का और षट्खण्डागम के सूत्र 5.5.34 में 4, 24, 28, 32, 48, 144, 168, 192, 288, 336 और 384 की भेद संख्या का उल्लेख मिलता है। इन भेदों को अकलंक और धवलाटीकाकार ने निम्न प्रकार से स्पष्ट किया है -
1. चार भेद के रूप में अवग्रह, ईहा, अवाय एवं धारणा ।
2. अवग्रह आदि चार को श्रोत्रेन्द्रियादि छह भेदों से गुणा करने पर 24 भेद होते हैं,
3. नंदीसूत्र में वर्णित 28 भेद के समान ।
4. व्यंजनावग्रह के भेदों को अलग से मानते हुए प्राप्त 28 भेदों में अवग्रह, ईहा, अवाय और धारणा को मिलाने पर 32 भेद होते हैं।
5. अवग्रहादि चार को बहु
आदि 12 से गुणा करने पर 48 भेद ।
6. उक्त 24 भेदों को बहु आदि छह से गुणा करने पर 144 भेद होते हैं ।
7. व्यंजनावग्रह के भेदों को अलग से मानते हुए प्राप्त 28 भेदों को बहु आदि 6 से गुणा करने पर 168 भेद ।
8. उक्त 32 भेदों को बहु आदि 6 से गुणा करने पर 192 भेद ।
9. उक्त 24 भेदों को बहु आदि बारह से गुणा करने पर 288 भेद ।
10. व्यंजनावग्रह के भेदों को अलग से मानते हुए प्राप्त 28 भेदों को बहु आदि 12 से गुणा करने पर 336 भेद ।
11. उक्त 32 भेदों को बहु आदि 12 से गुणा करने पर 384 भेद प्राप्त होते हैं।
165. विशेषावश्यकभाष्य, गाथा 304-306
166. विशेषावश्यकभाष्य, गाथा 307