Book Title: Visheshavashyakbhashya ka Maldhari Hemchandrasuri Rachit Bruhadvrutti ke Aalok me Gyanmimansiya Adhyayan
Author(s): Pavankumar Jain
Publisher: Jaynarayan Vyas Vishvavidyalay
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________________ [108] विशेषावश्यकभाष्य एवं बृहवृत्ति के आलोक में ज्ञानमीमांसीय अध्ययन अयोग्य को शिक्षा देने से हानि जो एक अर्थपद को भी यथार्थ रूप से ग्रहण नहीं कर पाता, ऐसे अयोग्य शिष्य को वाचना देने से आचार्य और श्रुत का अवर्णवाद होता है। कोई कहता है - 'आचार्य कुशल नहीं हैं, उनमें प्रतिपादन की क्षमता नहीं है। कोई कहता है, 'श्रुतग्रन्थ परिपूर्ण अथवा उपयुक्त नहीं है।' उस शिष्य को वाचना देने में समय अधिक बीत जाता है, इससे आचार्य सूत्र और अर्थ का परावर्तन नहीं कर सकते, अन्य योग्य शिष्यों को पूर्ण वाचना नहीं दे सकते / इस प्रकार सूत्र और अर्थ की परिहानि होती है। ___जैसे वन्ध्या गाय सस्नेह आस्फालन करने पर भी दूध नहीं देती, वैसे ही मूढ शिष्य कुशल गुरु से एक अक्षर भी ग्रहण नहीं कर सकता। अयोग्य को वाचना देने वाला क्लेश का अनुभव करता है और प्रायश्चित का भागी होता है 52 शिक्षाशील के गुण उत्तराध्यन सूत्र में शिक्षाशील व्यक्ति के आठ लक्षण बताये हैं, यथा 1. हंसता नहीं है, 2. इन्द्रियों और मन को वश में रखता है, 3. किसी का भी मर्म प्रकाशित नहीं करता है, 4. चरित्र ऊंचा होता है, 5. चारित्र में दोष नहीं लगाता है, 6. रसों में आसक्त नहीं होता है, 7. क्रोध नहीं करता है और 8. सत्य बोलता है 253 शिक्षा प्राप्ति में बाधक तत्त्व ___अहंकार, क्रोध, प्रमाद, रोग और आलस्य करने वाला श्रुतज्ञान प्राप्त नहीं कर सकता है।54 सात कारण से ज्ञान घटता है 1. आलस्य करने से, 2. निंदा करने से, 3. क्लेश करने से, 4. शोक करने से, 5. चिंता करने से, 6. शरीर में रोग होने से, 7. कुटुम्ब पर अधिक मोह रखने से। श्रुतज्ञान देने की विधि गुरु महाराज शिष्य को किस प्रकार श्रुतज्ञान दें, इसकी विधि बताते हुए जिनभद्रगणि कहते हैं - पहले सूत्र पढ़ावे और सामान्य अर्थ बतावे, फिर नियुक्ति मिश्रित सूत्रार्थ पढ़ावे और अन्त में नय, निक्षेप प्रमाणादि सहित 'निरवशेष' सूत्रार्थ पढ़ावे। यह श्रुतदान की विधि है।255 श्रुत के अलावा भी भाष्यकार ने अन्य प्रसंगों पर श्रुत के सम्बन्ध में जो उल्लेख किया हैं, वह निम्न प्रकार से है श्रुत कैसे सीखें? जिनभद्रगणि ने श्रुत सीखने के दस उपाय बताये हैं, यथा 1. अहीनाक्षर - अक्षर हीन नहीं हो, 2. अनत्यक्षर - अक्षर अधिक न हो, 3. अव्याविद्धाक्षर - जिसका वर्णनविन्यास नासमझ के द्वारा बानाई गई माला के समान अस्त-व्यस्त न हो, 4. अस्खलित -विषम भूमि पर चलाने पर जिस प्रकार हल स्खलित होता है, वैसे श्रुत स्खलित न हो, 5. अमीलित पद-वाक्य - जैसे भिन्न-भिन्न प्रकार के धान को अलग रखा जाता है, वैसे ही जिसके पद-वाक्य आदि मिश्रित न हों, 6. अव्यत्यानेडित - जिसमें विभिन्न आगम-ग्रंथों के वाक्यों का मिश्रण न हो, 7. परिपूर्ण - जो मात्रा, 252. विशेषावश्यकभाष्य गाथा 1457 253. उत्तराध्ययन सूत्र अध्ययन 11 गाथा 4-5 254. उत्तराध्यन सूत्र अध्ययन 11, गाथा 3 255. सुत्तत्थो खलु पढमो, बीओ णिज्जुत्तिमीसिओ भणिओ। तइओ य णिरवसेसो, एस विही होइ अणुओगे॥ -आवश्यकनियुक्ति गाथा 24, नंदीसूत्र, पृ. 206 विशेषाश्यकभाष्य गाथा 566