Book Title: Visheshavashyakbhashya ka Maldhari Hemchandrasuri Rachit Bruhadvrutti ke Aalok me Gyanmimansiya Adhyayan
Author(s): Pavankumar Jain
Publisher: Jaynarayan Vyas Vishvavidyalay
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________________ द्वितीय अध्याय - ज्ञानमीमांसा : सामान्य परिचय [107] 13. असज्झाइए सज्झाइयं - अस्वाध्याय अर्थात् ऐसा कारण या समय उपस्थित होना जिसमें शास्त्र का स्वाध्याय वर्जित है, उसमें स्वाध्याय करना, असज्झाइए सज्झाइयं अतिचार है / अस्वाध्याय के 32 कारण कहे गये हैं। 14. सज्झाइए न सज्झाइयं - सज्झाइए न सज्झाइयं अर्थात् स्वाध्याय काल में स्वाध्याय न करना दोष है। श्रुत (ज्ञान) ग्रहण की प्रक्रियादि श्रुत-अध्ययन का प्रयोजन जिससे शुभ चित्त का निर्माण होता है, अध्यात्म की उपलब्धि होती है, तथा जिससे बोधि, संयम और बन्धन मुक्ति के तथ्यों की अधिक प्राप्ति होती है, वह अध्ययन है।45 दशवैकालिक सूत्र के नववें अध्ययन के चौथे उद्देशक में श्रुत अध्ययन के चार कारण बताये हैं, यथा 1. मुझे श्रुत का लाभ होगा, ज्ञान बढ़ेगा, 2. मैं एकाग्र-चित्त हो पाऊंगा, 3. मैं स्वयं को धर्म में स्थापित करूंगा और 4. मैं स्वयं धर्म में स्थापित होकर दूसरों को उसमें स्थापित करूँगा /46 अनुयोगद्वार के अनुसार - 1. अध्यात्म की उपलब्धि, 2. उपचित कर्मों का क्षय (अपचय), 3. नये कर्मों का निरोध (अनुपचय) उत्तराध्ययन सूत्र के अनुसार - 1. परम अर्थ (मोक्ष) की खोज. 2. स्वयं सिद्धि प्राप्त करने की अर्हता, 3. दूसरों की सिद्धि प्राप्त कराने की क्षमता 47 ज्ञान आदान-प्रदान के कारण - 1. शिष्यों को श्रुतसम्पन्न बनाने के लिए, 2. शिष्यों के उपकार के लिए, 3. कर्मों की निर्जरा के लिए, 4. वाचना द्वारा स्वयं के श्रुत को पुष्ट करने के लिए, 5. श्रुतज्ञान की परंपरा चालू रखने के लिए ज्ञान सीखने के पांच कारण - 1. आज्ञा के लिए 2. दर्शन के लिए 3. चारित्र के लिए 4. मिथ्या अभिनिवेश छोड़ने के लिए 5. यर्थाथ ज्ञान के लिए शिक्षा प्राप्त करने की योग्यता गुरु का अतिशय विनय करने वाला, देश और काल के अनुकूल द्रव्य - अशन, पान, वस्त्र, पात्र, औषध आदि उपलब्ध कराने वाला, अभिप्राय को जानने वाला अनुकूल शिष्य सम्यक् श्रुत को प्राप्त करता है।48 जो शिष्य विनीत है, बद्धांजलि होकर गुरु से बात करता है, गुरु के अभिप्राय का अनुवर्तन करता है, जो गुरुजनों की आराधना करा है, उसे गुरु विविध प्रकार का ज्ञान शीध्र करा देता हैं 49 जो सदा गुरुकुल में वास करता है, जो समाधिवाला होता है, जो उपधान-तप करता है, जो प्रिय व्यवहार करता है, जो प्रिय बोलता है, वह शिक्षा प्राप्त कर सकता है 250 जो मुनि आचार्य और उपाध्याय की शुश्रूषा और आज्ञा-पालन करते हैं, उनकी शिक्षा उसी प्रकार बढ़ती है, जैसे जल में सीचे हुए वृक्ष।51 ज्ञानाभ्यास के अयोग्य - 1. अविनीत 2. विगय प्रतिबद्ध 3. अशांत क्लेशी 4. मायावी। ज्ञानाभ्यास के योग्य - 1. विनीत 2. विगय अप्रतिबद्ध 3. कषाय, क्लेष रहित शांत 4. अमायावी। 245. विशेषावश्यकभाष्य गाथा 960 246. दशवैकालिक सूत्र अ.9, उ. 4, गाथा 5 247. उत्तराध्ययन सूत्र अध्ययन 11 गा०32 248 विशेषावश्यकभाष्य गाथा 937 249. आवश्यकनियुक्ति गाथा 138 250. उत्तराध्ययन सूत्र, अध्ययन 11, गाथा 14 251, दशवैकालिक सूत्र अध्ययन 9, उ. 2, गा०12