Book Title: Visheshavashyakbhashya ka Maldhari Hemchandrasuri Rachit Bruhadvrutti ke Aalok me Gyanmimansiya Adhyayan
Author(s): Pavankumar Jain
Publisher: Jaynarayan Vyas Vishvavidyalay
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प्रथम अध्याय - विशेषावश्यकभाष्य एवं बृहद्वृत्ति : एक परिचय १३. किं नार - सामायिक क्या है? सामायिक जीव है या अजीव है? इत्यादि रूप से और द्रव्यार्थिक और पर्यायार्थिक दृष्टि से सामायिक का विवेचन किया गया है।
(गाथा 2633 से 2658 तक) १४. कतिविष द्वार - सामायिक तीन प्रकार की है - सम्यक्त्व, श्रुत और चारित्र। इनके भेद-प्रभेदों का कथन किया गया है।
(गाथा 2673 से 2677 तक) १५. कस्य द्वार - जिसकी आत्मा संयम, नियम तप में रहती है, उसी के सामायिक होती है, इसी प्रकार का विविध वर्णन किया गया है।
(गाथा 2679 से 2691 तक) १६. कुत्र द्वार - सामायिक की प्राप्ति कहां होती है अर्थात् क्षेत्र, दिक्, काल, गति, भव्य, संज्ञी इत्यादि उपद्वारों के माध्यम से कुत्र द्वार का विचार किया गया है।
__ (गाथा 2692 से 2750 तक) १७. केषु द्वार - सामायिक किन द्रव्य और पर्यायों में होती है, इसका वर्णन किया गया
(गाथा 2751 से 2760 तक) १८. कथं द्वार - सामायिक कैसे प्राप्त होती है इसका वर्णन भाष्यकार ने नहीं किया है, लेकिन टीकाकार मलधारी हेमचन्द्र ने इस ओर संकेत किया है।
(गाथा 2797) १९. कियचिर द्वार - इसमें सम्यक्त्व, श्रुत, देशविरति और सर्वविरति सामायिक की जघन्य और उत्कृष्ट स्थिति का वर्णन किया गया है। (गाथा 2761 से 2763 तक) २०. कति द्वार - सम्यक्त्व आदि सामायिक में विवक्षित समय में कितने प्रतिपत्ता, प्रतिपन्न
और प्रतिपातित होते हैं, इसका वर्णन किया गया है। (गाथा 2764 से 2774 तक) २१. सान्तर द्वार - जीव को किसी एक समय सम्यक्त्वादि सामायिक प्राप्त होने पर पुनः उसका परित्याग हो जाने पर जितने समय के बाद उसे पुनः उसकी प्राप्ति होती है, उसे अन्तर काल कहते हैं, इसका वर्णन किया गया है।
(गाथा 2775) २२. अविरहित द्वार - सम्यक्त्व आदि सामायिक की जघन्य, उत्कृष्ट अविरहित (विरह काल के बिना) काल की विवक्षा की गई है।
(गाथा 2777 से 2778 तक) २३. भव द्वार - जीव सम्यक्त्व आदि सामायिक को जघन्य और उत्कृष्ट कितने भवों में प्राप्त करता है, इसका वर्णन है।
(गाथा 2779) २४. आकर्ष द्वार - आकर्ष का अर्थ है आकर्षण अर्थात् प्रथम बार अथवा छोडे हुए का पुनर्ग्रहण, सम्यक्त्व आदि सामायिक का एक भव, अनेक भव की अपेक्षा जघन्य और उत्कृष्ट आकर्ष का वर्णन किया गया है।
(गाथा 2780 से 2781 तक) २५. स्पर्श द्वार - सम्यक्त्व आदि सामायिक से युक्त जीव जघन्य और उत्कृष्ट रूप से लोक के कितने क्षेत्र का स्पर्श करते हैं, इसका वर्णन है।
(गाथा 2782) २६ निरुक्ति द्वार - सम्यक्त्व आदि सामायिक की सम्यग्दृष्टि, अमोह, शुद्धि आदि प्रकार से नियुक्ति की गई है। निरुक्त शब्द का अर्थ पर्याय है। श्रुत सामायिक के अक्षर आदि से चौदह प्रकार के निरुक्त (पर्याय) हैं। इसी प्रकार देशविरति की विरताविरत, संवृतासंवृत आदि और सर्वविरति की सामायिक, सामयिक, सम्यग्वाद, समास, संक्षेप, अनवद्य, परिज्ञा, प्रत्याख्यान ये आठ निरुक्त किये गये हैं। यहाँ तक सामायिक के उपोद्घात अधिकार का वर्णन पूरा होता है।
(गाथा 2784 से 2787 तक)