Book Title: Visheshavashyakbhashya ka Maldhari Hemchandrasuri Rachit Bruhadvrutti ke Aalok me Gyanmimansiya Adhyayan
Author(s): Pavankumar Jain
Publisher: Jaynarayan Vyas Vishvavidyalay
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[44] विशेषावश्यकभाष्य एवं बृहद्वृत्ति के आलोक में ज्ञानमीमांसीय अध्ययन जैनधर्म की प्रभावना में वृद्धि की। सिद्धराज पर मलधारी हेमचन्द्र के प्रभाव का कारण उनका त्याग और तप तो था ही, परन्तु संभव है कि उनके पूर्व-जीवन के प्रभाव का भी इसमें यथेष्ट भाग हो।
मलधारी हेमचन्द्रसूरि की परम्परा में होने वाले मलधारी राजशेखर ने अपनी प्राकृत द्वयाश्रय की वृत्ति की प्रशस्ति में लिखा है कि मलधारी हेमचन्द्र के गृहस्थ जीवन का नाम प्रद्युम्न था। आप राजमंत्री थे और आप अपनी चार स्त्रियों का त्याग कर श्री अभयदेवसूरि के पास दीक्षित हुए।14 इससे ज्ञात होता है कि आचार्य हेमचन्द्र मलधारी राजमंत्री थे और सम्भव है कि इसके कारण अनेक राजाओं पर प्रभाव पड़ा हो।। मलधारी हेमचन्द्र का काल
अपने गुरु अभयदेवसूरि के देवलोकगमन के बाद वि. सं. 1168 में मलधारी हेमचन्द्र ने आचार्य पद प्राप्त किया था। जिस पर वे लगभग वि. सं. 1180 तक रहे। आचार्य विजयसिंह ने धर्मोपदेशमाला की बृहद्वृत्ति लिखी है, उसकी समाप्ति वि० सं० 1191 में हुई थी। उसकी प्रशस्ति में भी आचार्य विजयसिंह ने अपने गुरु आचार्य हेमचन्द्र मलधारी तथा उनके गुरु आचार्य अभयदेव मलधारी का परिचय दिया है। इससे ज्ञात होता है कि वि० सं० 1191 में आचार्य हेमचन्द्र मलधारी का स्वर्गवास हुए बहुत वर्ष हो चुके थे। 15 अतः इस बात को स्वीकार करने में कोई बाधा नहीं है कि अपने गुरु अभयदेव का वि० सं. 1168 में स्वर्गवास होने के उपरान्त आप आचार्य पद पर प्रतिष्ठित हुए और लगभग वि० सं. 1180 तक इस पद को सुशोभित किया।
मलधारी हेमचन्द्र ने अपने हाथ से लिखी हुई जीवसमास-वृत्ति की प्राप्ति के अन्त में अपना जो परिचय दिया है, उसके अनुसार वे यम, नियम, स्वाध्याय, ध्यान के अनुष्ठान में रत तथा परम नैष्ठिक, अद्वितीय पण्डित और श्वेताम्बराचार्य भट्टारक थे। यह प्रशस्ति उन्होंने संवत् 1164 में लिखी थी। 16
मलधारी के शिष्य विजयसिंह सूरि ने हेमचन्द्र के ग्रंथ 'धर्मोपदेशमाला' पर बृहद्वत्ति लिखी थी। उसकी प्रशस्ति से उसका रचना काल वि. स. 1191 निश्चित होता है। इस समय तक मलधारी हेमचन्द्र को दिवगंत हुए पर्याप्त समय अर्थात् लगभग एक दशक व्यतीत हो चुका था। चूंकि मलधारी हेमचन्द्र के ग्रंथों की प्रशस्तियों में जो रचना समय निर्दिष्ट हुआ है, उसमें वि. सं. 1177 के बाद का कोई उल्लेख नहीं है। अत: विद्वानों ने इनका समय वि. सं. 1140-1180 निर्णीत किया है।117
मलधारी हेमचन्द्र ने अपने गुरु की आज्ञा से दस ग्रंथ लिखे थे। लिखने में उनका मुख्य उद्देश्य अपने शुभाध्यवसाय को स्थिर रखना था, गौण उद्देश्य यह था कि उनके ग्रंथों को पढ़कर दूसरे व्यक्ति भी मोक्षमार्ग की शुद्धि कर शिवनगरी की ओर प्रयाण करें।
मलधारी हेमचन्द्र ने सर्वप्रथम उपदेशमाला मूल और भवभावनामूल की रचना की। तदनन्तर उन दोनों की क्रमश: 14 हजार और 13 हजार श्लोकप्रमाण वृत्तियाँ बनाई। इसके बाद अनुयोगद्वार, जीव समास और शतक (बंधशतक) पर क्रमश: 6, 7 और 4 हजार श्लोकप्रमाण टिप्पण लिखा, 114. जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास, पृ. 167 115. श्रीहेमचन्द्र इति सूरिरभूदमुष्य शिष्यः शिरोमणिरशेषमुनीश्वराणाम्।
यस्साधुनापि चरितानि शरच्च्छशांकच्छायोज्ज्वलानि विलसन्ति दिशां मुखेषु ।।13 ॥ - गणधरवाद, प्रस्तावना, पृ. 54 116. “ग्रन्थाग्र० ६६२७। सम्वत् ११६४ चैत्र सुदि ४ सोमऽद्येह श्रीमदणहिलपाटके समस्तराजावलिविराजितमहाराजाधिराज
परमेश्वर-श्रीमज्जयसिंहदेवकल्याणविजयराजे एवं काले प्रवर्तमाने यमनियमस्वाध्यायानुष्ठानरतपरमनैष्ठिकपण्डित-श्वेताम्बराचार्यभट्टारक-श्रीहेमचन्द्राचार्येण पुस्तिका लि०श्री" -श्री शांतिनाथजी ज्ञान भण्डार की प्रति-श्रीप्रशस्ति संग्रह अहमदाबाद-पृ. 49
(उदधृत-जैन साहित्य का बृहद् इतिहास, भाग 3, पृष्ठ 410) 117. विशेषावश्यकभाष्य (आचार्य सुभद्रमुनि) प्रस्तावना पृ. 59