Book Title: Visheshavashyakbhashya ka Maldhari Hemchandrasuri Rachit Bruhadvrutti ke Aalok me Gyanmimansiya Adhyayan
Author(s): Pavankumar Jain
Publisher: Jaynarayan Vyas Vishvavidyalay
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[5] विशेषावश्यकभाष्य एवं बृहद्वृत्ति के आलोक में ज्ञानमीमांसीय अध्ययन
लिया गया है। दीक्षा से पूर्व सभी गणधर वैदिक विद्या के पंडित थे। इन्होंने दीक्षा से पूर्व भगवान् महावीर स्वामी से अपनी शंकाओं का समाधान प्राप्त कर भगवान् महावीर स्वामी की नेश्राय में संयम अंगीकार किया, इनकी शंकाएं इस प्रकार थीं -(गाथा 1549 से 2024 तक) i. इन्द्रभूति - आत्मा का स्वतन्त्र अस्तित्व - आत्मा और शरीर में भेद, आत्मा की सिद्धि के हेतु, व्युत्पत्ति मूलक हेतु, जीव की अनेकता, जीव का स्वदेह परिमाण, जीव की नित्यानित्यता, जीव भूतधर्म नहीं इत्यादि प्रकार की अपनी शंकाओं का भगवान् महावीर से समाधान प्राप्त कर इन्द्रभूति अपने 500 शिष्यों के साथ दीक्षित हो गये। (गाथा 1559 से 1604 तक) ii. अग्निभूति - कर्म की सत्ता - मूर्त कर्म और आत्मा का संबंध, ईश्वरकर्तृत्व का खंडन इत्यादि प्रकार की अपनी शंकाओं का भगवान् महावीर से समाधान प्राप्त कर अग्निभूति अपने 500 शिष्यों के साथ दीक्षित हो गये।
(गाथा 1610 से 1644 तक) iii. वायुभूति - आत्मा और देह का भेद, इन्द्रिय भिन्न आत्म-साधक अनुमान, आत्मा की नित्यता, आत्मा की अदृश्यता इत्यादि प्रकार की अपनी शंकाओं का भगवान् महावीर से समाधान प्राप्त कर वायुभूति अपने 500 शिष्यों के साथ दीक्षित हो गये।
(गाथा 1649 से 1686 तक) vi. व्यक्तस्वामी - शून्यवाद का निरास, वायु और आकाश का अस्तित्व, भूतों की सजीवता, हिंसा-अहिंसा का विवेक इत्यादि प्रकार की अपनी शंकाओं का भगवान् महावीर से समाधान प्राप्त कर व्यक्त अपने 500 शिष्यों के साथ दीक्षित हो गये। (गाथा 1687 से 1769 तक) v. सुधर्मा - इहलोक और परलोक की विचित्रता संबंधी अपनी शंका का समाधान होने पर सुधर्मा अपने 500 शिष्यों के साथ दीक्षित हो गये। (गाथा 1770 से 1801 तक) vi. मंडिक - बंध और मोक्ष के स्वरूप संबंधी अपनी शंका का समाधान होने पर मंडिक अपने 350 शिष्यों के साथ दीक्षित हो गये।
(गाथा 1802 से 1863 तक) vii. मौर्यपुत्र - देवों के अस्तित्व संबंधी अपनी शंका का समाधान प्राप्त होने पर मौर्यपुत्र अपने 350 शिष्यों के साथ दीक्षित हो गये।
(गाथा 1864 से 1884 तक) viii. अकंपित - नारकों के अस्तित्व संबंधी अपनी शंका का समाधान होने पर अकंपित अपने 350 शिष्यों के साथ दीक्षित हो गये।
(गाथा 1885 से 1904 तक) ix. अचलभ्राता - पुण्य और पाप के स्वरूप संबंधी अपनी शंका का समाधान होने पर अचलभ्राता अपने 300 शिष्यों के साथ दीक्षित हो गये। (गाथा 1905 से 1948 तक) x. मेतार्य - परलोक के अस्तित्व संबंधी अपनी शंका का समाधान होने पर मेतार्य अपने 300 शिष्यों के साथ दीक्षित हो गये।
(गाथा 1949 से 1971 तक) xi. प्रभास - निर्वाण की सिद्धि संबंधी अपनी शंका का समाधान प्राप्त होने पर प्रभास अपने 300 शिष्यों के साथ दीक्षित हो गये।
(गाथा 1972 से 2024 तक) गणधरों की उपर्युक्त शंकाओं का सामाधान करते हुए भगवान् महावीर स्वामी ने जो हेतु-दृष्टांत दिए वे पठनीय हैं। इन हेतु और दृष्टांतों से अन्य दर्शनों की मान्यताओं का भी निराकरण हो जाता है।
४-५. क्षेत्र और काल - सामायिक की उत्पत्ति किस क्षेत्र और काल में हुई है, इसका उल्लेख है। भगवान ने सर्वप्रथम महासेन वन में वैशाख सुदी 11 को पूर्वाह्न में सामायिक का निरूपण किया है।
(गाथा 2083)