Book Title: Visheshavashyakbhashya ka Maldhari Hemchandrasuri Rachit Bruhadvrutti ke Aalok me Gyanmimansiya Adhyayan
Author(s): Pavankumar Jain
Publisher: Jaynarayan Vyas Vishvavidyalay
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[28] विशेषावश्यकभाष्य एवं बृहवृत्ति के आलोक में ज्ञानमीमांसीय अध्ययन आवश्यक विवरण
आचार्य मलयगिरि ने भी आवश्यक सूत्र पर आवश्यकविवरण नामक वृत्ति लिखी है। यह विवरण मूल सूत्र पर न होकर आवश्यकनियुक्ति पर है। यह विवरण अपूर्ण ही प्राप्त हुआ है। वर्तमान में जो विवरण उपलब्ध है वह चतुर्विंशतिस्तव नामक द्वितीय अध्ययन के 'थूण रयणविचित्तं कुंथु सुमिणम्मि तेण कुंथुजिणो' विवेचन तक प्राप्त होता है। उसके पश्चात् भगवान् अरनाथ के उल्लेख के बाद का विवरण नहीं मिलता है अर्थात् वह अपूर्ण है। जो विवरण उपलब्ध है उसका ग्रंथमान 18000 श्लोक प्रमाण है। नियुक्ति की गाथाओं पर सरल और सुबोध शैली में विवेचन किया गया है।
इस विवरण के प्रारंभ में भगवान् पार्श्वनाथ, भगवान् महावीर और अपने गुरु को नमस्कार कर टीकाकार मलयगिरि ने बताया है कि यद्यपि आवश्यकनियुक्ति पर अनेक विवरण ग्रंथ विद्यमान हैं, किन्तु वे कठिन होने के कारण मंदबुद्धि के लोगों के लिए पुनः उसका विवरण प्रारंभ कर कर रहे हैं। उन्होंने सर्वप्रथम मंगल का नामादि भेदपूर्वक विस्तृत व्याख्यान किया एवं उसकी उपयोगिता पर पर्याप्त प्रकाश डाला है। इसमें यत्र-तत्र विशेषावश्यकभाष्य की गाथाएं उद्धृत की गई हैं। इन गाथाओं पर स्वतंत्र विवेचन न कर उनका सार अपनी वृत्ति में उटूंकित कर दिया है। वृत्ति में जितनी गाथाएँ आई हैं, वे वृत्ति के वक्तव्य को पुष्ट करती हैं। नियुक्ति की गाथाओं के पदों का अर्थ करते हुए तत्प्रतिपादित प्रत्येक विषय का आवश्यक प्रमाणों के साथ वर्णन किया है। यह टीका भाषा एवं शैली दोनों ही दृष्टियों से सरल व उपयोगी है। जगह-जगह प्राकृत में कथानक दिये हैं। इस विवरण में विशेषावश्यक भाष्य की स्वोपज्ञवृत्ति का भी उल्लेख हुआ है। साथ ही प्रज्ञाकरगुप्त, आवश्यकचूर्णिकार, आवश्यक-मूलटीकाकार, आवश्यक-मूलभाष्यकार, लघीयस्त्रयालंकार अकलंक, न्यायावतार-विवृतिकार आदि का उल्लेख है।
आचार्य मलयगिरि प्रसिद्ध महान् टीकाकार होते हुए भी आपके जीवन-वृत्त और गुरु परम्परा के सम्बन्ध विशेष उल्लेख नहीं मिलता है। आप आचार्य हेमचन्द्र के समकालीन थे। आपका समय विद्वानों ने बारहवीं शताब्दी के आस-पास का स्वीकार किया है। आपकी उक्त टीका के अलावा नंदी, राजप्रश्नीय, पिंडनियुक्ति आदि से सम्बन्धित 25 टीका ग्रंथों का वर्णन प्राप्त होता है। आवश्यक वृत्तिप्रदेशव्याख्या
मलधारी हेमचन्द्रसूरि ने हरिभद्रकृत आवश्यक वृत्ति पर 4600 श्लोक प्रमाण आवश्यकवृत्तिप्रदेशव्याख्या या हारिभद्रीयावश्यकवृत्ति-टिप्पणक नामक वृत्ति लिखी है। इस पर हेमचन्द्र के ही एक शिष्य श्रीचन्द्रसूरि ने एक और टिप्पण लिखा है जिसे प्रदेशव्याख्या-टिप्पण कहते हैं। प्रारम्भ में व्याख्याकार आदिजिनेश्वर भगवान् ऋषभदेव को नमस्कार करते हैं, तदनन्तर वर्धमानपर्यन्त शेष समस्त तीर्थंकरों को नमस्कार करके संक्षेप में टिप्पण लिखने की प्रतिज्ञा करते हैं। इसके बाद व्याख्याकार ने हारिभद्रीय आवश्यकवृत्ति के कुछ कठिन स्थलों का सरल शैली में व्याख्यान करते हुए अन्त में व्याख्यागत दोषों की संशुद्धि के लिए मुनिजनों से प्रार्थना की है।
आवश्यकवृत्ति-प्रदेशव्याख्या का प्रकाशन ई. 1920 में देवचन्द्र लालभाई जैन पुस्तकोद्धार संस्था, बम्बई द्वारा हुआ है।
91. जैन साहित्य का बृहद् इतिहास, भाग 3, पृ. 406-407 92. जैन साहित्य का बृहद् इतिहास, भाग 3, पृ. 387 93. वही, भाग 3, पृ. 411-412