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प्रस्तावना
महाकवि रइधने अपने 'सम्मइजिणचरिउ' में महावीरके गर्भ-कल्याणककी तिथि अन्य कवियोंसे भिन्न तथा विबध श्रीधरके समान 'श्रावण शुक्ल षष्ठी' मानी है। इसी प्रकार उन्होंने जन्माभिषेकके समय सुमेरुपर्वतको ही कम्पित नहीं बतलाया अपितु सूर्य आदिको भी कम्पित बतलाया है। इनके अतिरिक्त पिता सिद्धार्थ द्वारा विवाह-प्रस्ताव तथा महावीरकी अस्वीकृतिपर उनका दुखित होना, त्रिपृष्ठ-नारायण द्वारा सिंह-वध, गौतम-गणधरके निवास-स्थल-पोलाशपुर नगरका उल्लेख, महावीर-समवशरण-वर्णनसे ग्रन्थारम्भ, महावीरके ज्ञातवंशका उल्लेख, महावीर-निर्वाणके समयसे ही दीपावली-पर्वका प्रचलन आदिके उल्लेख सर्वप्रथम एवं मौलिक हैं।
इनके अतिरिक्त रइधू के 'सम्मइजिणचरिउ' की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि उसमें 'चाणक्य-चन्द्रगुप्त कथानक' उपलब्ध है, जो दिगम्बर-परम्परामें अद्यावधि उपलब्ध, ज्ञात एवं प्रकाशित अन्य महावीरचरितोंमें उपलब्ध नहीं है। इस कथानकमें कवि रइधूने भद्रबाहु, नन्दराजा, शकटाल, चाणक्य, चन्द्रगुप्त आदिके जीवन-चरितोंका सुन्दर परिचय प्रस्तुत किया है ।
सम्मइजिणचरिउ' में दीक्षा तथा ज्ञान-कल्याणककी तिथियों के उल्लेख नहीं मिलते, सम्भवत: कविकी भूलसे ही अनुल्लिखित रह गये हैं।
• महाकवि पदमने रासा-शैलीकी कृति-'महावीररास' में महावीरका जितना सरस, रोचक एवं मार्मिक जीवन-वृत्त अंकित किया है, उसकी तुलनामें बहुत कम रचनाएं आ पाती हैं। उनकी रचनामें दो घटनाएँ मौलिक हैं । प्रथम तो यह कि महावीर जब वनमें जाने लगते हैं तब उन्होंने सर्वप्रथम अपने मातापिताको संसारकी अनित्यताका परिचय देकर स्वयं दीक्षा ले लेने के औचित्यको समझाया तथा वनमें जाने देनेके लिए राजी कर लिया। इसके बाद उन्होंने स्वजनोंसे क्षमा मांगी तथा उन्हें भी क्षमा प्रदान की। तत्पश्चात् सिंहासन छोड़कर वनकी ओर चले । किन्तु माताकी ममता नहीं मानती। अतः वह दहाड़ मारकर चीख उठती है। इतना ही नहीं वह पुत्रको समझाकर वापस लौटा लाने हेतु वन-खण्डकी ओर रुदन करती हुई भागती है । इस रुदनकी स्वाभाविकता तथा मार्मिकताको देखते हुए अनुभव होता है कि उसका चित्रण करने में कविको पर्याप्त धैर्य एवं साहस बटोरनेका प्रयास करना पड़ा होगा।
इसी प्रकार कविने, जो कि अपनेको 'जिन-सेवक' भी कहते है, लिखा है कि महावीर-निर्वाणके समय इन्द्रने पालकीमें महावीरको एक मायामयी मूर्तिकी स्थापना कर उसकी पूजा की और उसके बाद महावीरके भौतिक-शरीरको दाह-क्रिया की ।
गुणभद्र एवं पुष्पदन्तने एक ऐतिहासिक तथ्यका उल्लेख किया है। उन्होंने लिखा है कि २३वें तीर्थंकर पार्श्वनाथके परिनिर्वाणके २५० वर्ष बाद तीर्थंकर महावीरका जन्म हुआ । इस उल्लेखसे पार्श्वनाथको निर्वाणतिथि एवं जन्मकाल आदिके निर्धारणमें पर्याप्त सहायता मिलती है। यदि इन कवियोंने इस उल्लेखकी आधारसामग्रीका भी संकेत किया होता, तो कई नवीन तथ्य उभरकर सम्मुख आ सकते थे।
५. वड्ढमाणचरिउ : एक पौराणिक महाकाव्य 'वड्डमाणचरिउ' एक सफल पौराणिक महाकाव्य है। इसमें पुराण-पुरुष महावीरके चरितका वर्णन है। इस कोटिके महाकाव्योंमें अनेक चमत्कृत, अलौकिक एवं अतिप्राकृतिक घटनाओंके साथ-साथ धार्मिक, दार्शनिक, सैद्धान्तिक एवं आचारात्मक मान्यताएँ तथा धर्मोपदेश, विचित्र स्वप्न-दर्शन आदि सन्दर्भोका रहना आवश्यक है । कुशल कवि उन सन्दर्भोको रसमय बनाकर उन्हें काव्यकी श्रेणी में उपस्थित करता है। विबुध .
१-३, दे. परिशिष्ट सं. २ (क) ।
४. यह रचना अप्रकाशित है तथा इन पंक्तियों के लेखकके पास सुरक्षित है। ५-७. दे. परिशिष्ट सं. २(क) ।
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