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१०.४.३] हिन्दी अनुवाद
२२७ का समस्त सन्देह दूर हो गया। अपने ५०० द्विज-पुत्रोंके साथ मिलकर उस गौतम-विप्रने (तत्काल ही ) सब कुछ त्यागकर जिन-दीक्षा ले ली। पूर्वाह्नमें दीक्षा लेनेके साथ ही उसे ( गौतमको ) ७ विख्यात ( अक्षीण ) लब्धियाँ (-बुद्धि, क्रिया, विक्रिया, रस, तप, औषधि एवं बल ) उत्पन्न १० हो गयी तथा उसी दिन अपराल्में उस गौतम नामक ऋषिने महावीर-जिनके मुखसे निर्गत अर्थोंसे अलंकृत सांगोपांग द्वादशांग श्रुतपदोंकी रचना की।
पत्ता-मुकुटकी मणि-किरणोंसे गगनको भी भास्वर बना देनेवाले तथा अपने क्षमागुणसे शत्रुको भी मित्र बना लेनेवाले ( उस ) इन्द्रने देवकृत अतिशयों द्वारा सम्मानित ( उन ) जिनेन्द्रकी गुरु-भक्तिपूर्वक ( इस प्रकार ) स्तुति की ॥१९५।।
समवशरणमें विराजमान सन्मति महावीरकी इन्द्र द्वारा
. संस्तुति तथा सप्त-तत्त्व सम्बन्धी प्रश्न "दुरितोंके नाशक तथा जीवाजीवके विभेदोंके प्रकाशक हे देवाधिदेव, आपकी जय हो। रत्नमय पंचवद नाशन-सिंहासनवाले तथा चतुर्गतिरूप संसारके दुख-समूहको नष्ट करनेवाले है देव, आपकी जय हो । केवलज्ञान रूपी नेत्रसे समस्त पदार्थों को यथार्थरूपमें जाननेवाले तथा लोकालोकके भावोंका अवलोकन करनेवाले हे देव, आपकी जय हो। समस्त प्राणिवर्गके मनको शान्ति प्रदान करनेवाले हे देव, आपकी जय हो। सिद्धिरूपी पुरन्ध्रीको वशमें करनेवाले हे शंकर, ५ आपकी जय हो । अपने यश-समूहसे शरद्कालीन मेघोंको भी जीत लेनेवाले हे जिनवर, हे तीर्थंकर, हे दिगम्बर, आपकी जय हो। दयारूपी लतासे विषधरको भी परिवर्तित कर देनेवाले, रतिवरकामदेवके विषैले शर-बाणोंका निर्दलन कर देनेवाले हे देव, आपकी जय हो। पंचेन्द्रियरूपी हरिणके लिए मगाधिपके समान हे देव, आपकी जय हो, । छह द्रव्योंका कथन करनेवाले हे त्रिजगाधिप देव, आपकी जय हो । लोकाधिपोंसे संस्तुत तथा नीतिमार्गके निर्माता हे देव, आपकी जय १० हो । अपने मुखकी ज्योतिसे नवनीतकी भी अवहेलना कर देनेवाले हे देव, आपकी जय हो । अपनी दिव्य ध्वनिसे सुरपथ ( आकाश ) को भर देनेवाले हे देव, आपको जय हो । रत्नत्रयसे अशुभकारी पथ-मिथ्यात्वका निवारण करनेवाले हे देव, आपकी जय हो । धनपति-कुबेर द्वारा प्रविरचित समवशरणरूपी विभूषणसे युक्त तथा रत्नमय विभूषणोंका परित्याग कर देनेवाले हे देव, आपकी जय हो।"
___ पत्ता-इस प्रकार स्तुति करके त्रिदशनाथ-इन्द्रने परमेश्वर महावीर जिनेन्द्रसे सप्त तत्त्वोंके भेद सम्बन्धी प्रश्न पूछा। उसे सुनकर जिनेश्वरने-॥१९६।।
जीव-भेद, जीवोंको योनियों और कुलक्रमोंपर महावीरका प्रवचन विद्याधरों, देवों और मनुष्यों द्वारा पूजित उन्होंने ( महावीर जिनेन्द्रने ) ओष्ठ-स्फुरणके बिना ही सप्ततत्त्वों पर इस प्रकार प्रवचन किया
सिद्ध और संसारीके भेदसे जीव दो प्रकारके होते हैं। अपने कर्मोंके भारको ढोनेवाले जोव संसारी कहलाते हैं। नित्य निगोद, इतर निगोद, वायुकायिक, पृथ्वीकायिक, जलकायिक और तेजोकायिक जीवोंकी (प्रत्येककी ) स्पष्ट रूपसे ७-७ लाख योनियां हैं।
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