Book Title: Vaddhmanchariu
Author(s): Vibuha Sirihar, Rajaram Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

View full book text
Previous | Next

Page 447
________________ ३४४ वइराय - वैराग्य वइरायभाव- वैराग्यभाव वइरायल - वैराग्ययुक्त वइरि-वैरी, शत्रु वइरियण - वरीजन २२३ वइव - वैवस्वत ( यमराज ) ६।११।४ इसम इस - उप् + विश् ( बैठूं ) १।१५१८, २।६।११, २।२१।९ १।१४१२ १०।१६।५ २/२०१८ ३।२२।३ १।१३।६ ७१११४ २२०१६ ४।६।७ ७१०१९ ५।३।५ वज्जर- कथ् इत्यर्थे देशी ( धातु ) वज्जसेणु-वज्रसेन ( उज्जयिनीका राजा ) ७।१०।९ वज्जिउ-वर्जित ( छोड़कर ) २।६।६ १०११८ ११ वज्जंग - वाधांग ( कल्पवृक्ष ) वट्टणु-वरतन १० ३९/६ लगिरि - बहुलागिरि वड्ढइ - V वृध + इ वड्ढए - / वृध + इ वड्ढमाण - वर्धमान (१ पुष्पिका) (२ पुष्पिका) ( ३ पुष्पिका) (४ पुष्पिका) (५ पुष्पिका ) ( ६ पुष्पिका ) ( ७ पुष्पिका ) ( ८ पुष्पिका) ९।१६।१०, ( ९ पुष्पिका) १०।४१।६ ( १० पुष्पिका ) वड्ढारिउ-वर्धापयित वउ-वपु वक्खारगिरि - वक्षारगिरि वच्चइ - / व्रज + इ = वच्छत्थलु - वक्षस्थल वच्छर-वत्सर वच्छा - वत्सा (देश) वज्ज-बाजा वज्जदाढ - वज्रदाढ़ ( नामक योद्धा ) वज्जपाणि-वज्रपाणि ( इन्द्र ) वडमूल-वट- मूल वडवाणलु - वडवानल वडव - वटुक २।१४।६ वणयर- वनचर ३|४|४ वणवाल - वनपाल ३।५।१ वणसइकाय - वनस्पतिकाय १।११।२, ११२६, २|४|१३ वणि-वन वणिउ-वणिक वणियण - वणिक्जन वणिवाल - वनपाल वणीसरु - वणीश्वर, वणिक् श्रेष्ठ वर्णमयंगु-वन्यमतंग वणंतरे-वनके मध्य में Jain Education International वडुमाणचरिउ = पहुँचना वण-वन वणगयंद - वन्यगजेन्द्र वणमज्झ - वन के मध्यमें वण-मयंग - वनमतंग १०।१६।८ २१२।१० २।३।७ ४२११२ ९।१७/६ ४।१७।३ १०२२ १।१२८ २८१ २।१०।१० १०६८ वत्थ-वत्स वत्थु - वस्तु वप्प - बाप रे ( ध्वन्यात्मक ) वमंत - वम + शत्रू, वमन, के वय - वचन वय - व्रत वयण-वचन वयणा-वदन, मुख वयाहरण-व्रताभरण वर - उत्तम वरइ-वरण ( करना ) वरतणु - वरतनु ( देव ) वरय- श्रेष्ठ वरलक्खण- उत्तम लक्षण वरविवेउ-वर विवेक वराउ - वराक, बेचारा वराह - वराह ( पर्वत ) वरिसिय- वर्षित वरु-वर (पति) वल्लरी-वल्लरी, लता वल्लहु-वल्लभ वल्ली - वल्ली, लता वलक्ख-वलाक्ष ( धवल ) वलहद्द - बलभद्र ( विजय ) वलित्तए - वलित्रय, त्रिवलि वल-बलदेव वव्वर-वर वस -बसा For Private & Personal Use Only ४।१३॥७ ३।१२।१ १०।७१९ २।३।१९ २१६ ११४१९, ४१२४।३ २।३।१७ २1१०१५ ५/२०१५ २।६।७ १०११७१० १।१४।३ ५|४|१४ ५।१३।१५ १०१५/३ १।११९, २।११।१ १1९1११, २।१६ २१५१८ १।१०१५ २।१४।१ ५१३८ ६।११५ १।१।९ १।१७११३ ११५१३ ३।१६।१२ २७६ २1१०1१ ५1३1८ २।३।१४ २२२५, ५/३६ १।१५।६ १०1१८1९ ५।९।१५ ९।९।२ ५।२०।१० १०।१९।५ ६।१५।२ www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462