Book Title: Vaddhmanchariu
Author(s): Vibuha Sirihar, Rajaram Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 382
________________ १०.४१.१८] हिन्दो अनुवाद २७९ यह वर्धमान काव्य चतुर्विध संघके लिए शान्ति प्रदान करनेवाला हो तथा सुजन-समूहकी १० बुद्धि वर्धन करनेवाला हो। ___अपने कुलरूपी गृहके लिए दीपकके समान श्री रामचन्द्र अगणित सहस्र वर्षों तक जीवित रहें । निर्दोष सम्यक्त्वरूपी लक्ष्मीसे आच्छन्न तथा चन्द्रमाके समान सुन्दर श्रीचन्द्र भी परिवर्धित होते रहें, विमलचन्द्र भी चन्द्रमाके समान ही जनवल्लभ तथा दुर्लभ लक्ष्मीसे युक्त रहें। इन अपने पुत्रोंसे घिरे हुए तथा जिनवरधर्मके आनन्दसे भरे हुए श्री नेमिचन्द्र पृथिवी मण्डलपर चिरकाल १५ तक आनन्दित रहें तथा जिन-चरणारविन्दोंकी वन्दना करते रहें। इस ग्रन्थकी संख्या दो हजार, पाँच सौ ( अर्थात् २५०० गाथा प्रमाण ) जानो। घत्ता-श्री वीरनाथका यह चरित साधु श्री नेमिचन्द्रके पापमलका अपहरण करे तथा बुध श्रीधरके लिए निर्मल निर्वाण-श्री प्रदान करे ॥२३४।। दसवीं सन्धिको समाप्ति इस प्रकार प्रवर गुण-रत्न-समूहसे मरे हुए विबुध श्री सुकवि श्रीधर द्वारा विरचित साधु श्री नेमिचन्द्र द्वारा अनुमोदित श्री वर्धमान तीर्थकर देव चरितमें श्री वीरनाथके 'निर्वाण-गम [न' ] का वर्णन करनेवाला दसवाँ परिच्छेद समाप्त हुआ ॥ सन्धि १०॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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