Book Title: Vaddhmanchariu
Author(s): Vibuha Sirihar, Rajaram Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 392
________________ वियरई रोहति । 5 परिशिष्ट-१ (क) पासणाहचरिउके इतिहास, संस्कृति एवं साहित्यकी दृष्टिसे कुछ महत्त्वपूर्ण अंशोंका संकलन पोदनपुरका आलंकारिक वर्णन तहिं वसइ सुर-खयर-णरणाह मणहारि णामेण सिरि पोयणाउरु रमा हारि । जिहिँ कोवि ण कयावि अहिलसइ परणारि जहिं चोर ण मुसंति पहवंति जहिं णारि । जहिं मुणिहुँ दाणाई अणवरउ दीयंति जहिं महिस-सारंगच्छेलई न दीयंति । जहिं पवर तूराण रावा समुटुंति जहिं रयण संजडिय जिणहर णेणिटुंति । जहिं कणय-कलसाह घर-सिहरि सोहंति जहिं धयवडाडोय वियरई रोहति । जहिं चंद-रविकंत-मणि तिमिरु णासंति जहिँ भत्त विरसंत वारण विहासंति । जहिं विविह देसागयालोय दीसंति जहिँ तुरय तुंगंगहि संति सीसंति । जहिं भविय जिण पाय पंकय समच्चंति जहिं पंगणे पंगणे णारिणति । जहिं चार णाणेय मुणिणाह विदाई संवोहियासेस-भवियारविदाई। विरयंति धम्मोवएसं गहीरा वाणीए सिसिरत्तणिज्जिय समीराई। घत्ता-जहिं साम पसाहिय असय रसाहिय जणवय-णयण-सुहावण । वहुविह वेसायण सुर कप्पायण वहु वाणिय णाणा वण ॥-पास.-१११४ १२वीं सदीके विविध देश एवं वहाँके शस्त्रास्त्रोंकी विशेषताएँ धाविया तारणेवाल-जालंधरा कीरट्ठ-हम्मीर गज्जंत णं कंधरा । सेंधवा-सोण-पंचाल-भीमाणणा णइओरालि मेल्लंत पंचाणणा। मालवीया-सटक्का खसा-दुद्दमा णं दिणेसास भाणच्छ भीकद्दमा । सामिणो भूरि दाणं सरंता मणे वज्जिऊणं पिया-पुत्त-मोहं रणे। साउहं देवि जुझंति संकुज्झिया झत्ति कुंतग्ग भिण्णंगणो मुज्झिया । केवि संधेवि बाणालि बाणासणे कुंभि-कुंभ वियारंति संतासणे । केवि चक्केणि छिदंति सूरा सिरं कुंडला लग्ग माणिक्क-भा-भासिरं । केवि सत्तीहिं भिंदंति वच्छत्थलं माणियाणेय णारीथणोरुत्थलं । केवि मेल्लंति सेल्लं समुल्लाविया । वीर लच्छी विलासेण संभाविया । जंति उम्मग्ग लग्गा हयाणं थडा तुट्ट सीसा वि जुझं ति सूरा भडा । घत्ता-जुझं तिहिँ रविकित्तिहिं भडहिं भग्गु असेसु वि जउणहो साहणु। गेण्हंतु पाण मेलंतु मउxxणाणाविह संगहिय पसाहणु-पास.-४।११ कुमार-पाव पिता हयसेनको अपनी शक्तिका परिचय देते हुए कहते हैं णयलु तलि करेमि महि उप्परि वाउ वि वंधमि जाइ ण चप्परि । पाय-पहार गिरि संचालमि । णीरहि णीरु णिहिलु पच्चालमि । इंदहो इंद-धणुहु उट्टालमि फणिरायहो सिर-सेहरु टालमि । कालहो कालत्तण दरिसावमि धणवइ धण-धारहिं वरिसावमि । अग्गिकुमारहो तेउ णिवारमि वारुणु सुरु वरिसंतउ धारमि । तेल्लोक्कुवि लीलण उच्चायमि करयल-जुअलें रवि-ससिच्छायमि । ३७ 10 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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