Book Title: Vaddhmanchariu
Author(s): Vibuha Sirihar, Rajaram Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 396
________________ परिशिष्ट-१ (क) २९३ भीसावणाई असुहावणाई। चुअचामराई हसियामराई। गालिय जसाई पूरिय रसाई। विहडिय दयाई अवगय सियाई । णिवडिय सिराई खंडिय कराई। पहराउ राई ताडियउ राई। भिंदिय-णसाई किंदिय वसाई। सोसिय रसाई हय-साहसाई। पयडिय मुहाई पाविय दुहाई। णिरसिय सिवाई पोसिय सिवाई। तह वायसाई मह रक्खसाई। तजिय भयाई महियले गया। अइ संकुलाई करिवर कुलाई। घत्ता-पेखें वि रोसारुण लोयणहिं जउण-णराहिवेण परिभाविउ।। को महियले महुँ मयगलहि जो ण महा गरवइ संताविउ ॥-पास.-५७ पार्श्वनाथकी तपस्थली-अटवीका आलंकारिक वर्णन घत्ता-जहिं णउ लोरय संगरु करहिं वणवासिय-वितर मुणेहरहिं। गिरिवर समाण गंडय चलहिं अवरोप्परु वाणर किलिकिलहिँ ॥-पास.-७।१ वस्तु जहिं गयाहिव भमहिं मच्चंत जहिं हरिण फालई करहिं । जहिं मयारि मारंति कुंजर जहिं तरणि किरणे सरहिं। जहिं सरोस घुरुहुरहिं मंजर । जहिं सरि तीरुब्भव बहल कद्दम-रस लोलेहि । जुज्झिज्जइ सिसु ससि-सरिस दिढ दाढहि कोलेहिं ॥छ।। जइ हिंताल-ताल-तालूर साल-सरल-तमाल-मालूरई। अंब-कयंब-शिंब-जंबीर चंपइ-कंचणार-कणवीरई। टउह-कउह-बव्वूल-लवंगई जंबू-माहुलिंग-णारंगई। अरलू-पूजप्फल विरिहिल्लई सल्लइ-कोरंटय-अंकोल्लई। जा सवण्ण-धव-धम्मण-फणिसई वंस-सिरीस-पियंगु-पलासई। केयइ-कुरव-खइर-खज्जूरई मज्झण्णिय मुणि मणिरुह कंद'। पीलू-मयण-पक्ख रुद्दक्खइ कथारी-कणियारि-सुदक्खई। उंवरि-कटठंबरि-वरणाय चिंचिणि चंदणक्क पुण्णायई। णालिएरि-गंगेरि-वडारई सेंबलि-बाण वोर-महुवारइँ। घत्ता-तहिं मंडिय सयल धारायलए फासुअ सुविसाल सिलायलए । थिउ तणु विसग्गु विरएवि मुणि णं गिरिवरिंदु वारिहरझुणि ॥-पास.-७२ 10 51 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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