Book Title: Vaddhmanchariu
Author(s): Vibuha Sirihar, Rajaram Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

View full book text
Previous | Next

Page 438
________________ शब्दानुक्रमणिका ३३५ पिहियासव-पिहिताश्रव ( नामक मुनि) १११७११२, पुराकय-पूर्वकृत २।१४।१२ ६।५।५ पुरि-(इन्द्र) पुरी २।१११५ पिहियंबर-पिहिताम्बर ६।१०।७ पुरिय-पुरी + क (स्वार्थे) २।१२।७ पित्तणि-पृथुलता ३।१८।६ पुरिस-पुरुष ३।९।११ पिहुलत्त-पृथुलत्व ( मोटाई ) १०।१३।१४ पुरिसुत्तमु-पुरुषोत्तम (त्रिपृष्ठ) ६।२।५ पिहुलु-णहु-पृथुल आकाश २७७ पुरीस-पुरीष (मल) १०१३३४ पीड-पीड़ा २।१४।१० पुरुएव-पुरुदेव (ऋषभ) २।१४।६ पीडहरु-पीड़ाहर १।१६।११ पुरुरउ-पुरुरवा (भील) २।१०।१२, २।११।२ पीडिय-पीड़ित २।४।१० पुर-पुर १०।९।१ पीणिय-प्रीणित, प्रीत २७५ पुरोहिय-पुरोहित २।११५ पीय-पीत १०७२ पुरंत-पूर + शतृ ३।२६।४ पीयडंतु-पीलन + शतृ २।३।१५ पुरंदर-इन्द्र १।८।१३, ५।२२।९, ८।१७।१४, पीयल-पीतवर्ण १०।१८१९ १०.६७, १०॥३८।१३, १०॥३९।१३ पीयंकरु-प्रीतंकर ( देव ) ७।१७।१० पुरंधि-पुरन्ध्री ७७७, १०।३।४ पीयंबर-पीताम्बर ( त्रिपृष्ठ ) ६।१०७ पुलिंद-पुलिन्द (वनचर) १०।१९।६ पीलिज्जंत-पीलन + शतृ ( पेलना या पेरना) पुव्वदेसु-पूर्व-देश १३।६ ६।१२।५ पुव्वामुह-पूर्व-मुख, पूर्वाभिमुख ९।२०१२ पीलु-( तत्सम ) गज ३।२६।११ पुव्व विदेह-पूर्व-विदेह (देश) ८।१।१ पुक्करु-पुष्कर ( द्वीप) १०।९।६ पुव्वा-पूर्व ५।२०१७ पुक्खर-पुष्कर ५।२०।५ पुवावर-पूर्व और अपर ३।१८।५ पुक्खरि-पुष्कर, पोखर ५।४।११ पुव्वज्जिय-पाव-पूजित पाप २।४।२ पुक्खलवइ-पुष्कलावती ( नगरी ) २।१०।२ पुहई-पृथिवी (कायिक जीव) १०।६।४ पुग्गल-पुद्गल ७७१२, १०।३९।१० पुहईयर-पृथिवीधर ३।२४।३ पुच्छेविणु-/ पृच्छ + एविणु (पूछकर) १।१७।११ पूज-पूजा श७३ पुच्छिउ-पृष्ट, पूछा १९।८ पूयदुम-पूगद्रुम ११३।१० पुज्ज-पूज्य १११८ पूरण-पूरन १०१३९।१९ पुज्ज-पूजय धातोः कर्मणि श२।९ पूरिय-पूरित (भर दिया) २।२।७, २।९।६ पुडिंग-( देशी ) वदन, मुख ५।२१।९ पूरंतु-पूर + शतृ २।५।१६ पुण्ण-पुण्य १।४२, १०११३७ पूव-पीव १०।२५।२ पुत्त-पोतज ( जन्म प्रकार ) १०।१२।७ पूसमित्तु-पुष्यमित्र (विप्रपुत्र) २।१७।६, २।१८।३ पुप्फप्पह-पुष्पप्रभा ( दिक्कुमारी ) ९।५।८ पेक्ख-/दृश् (देखना) १।१२।४ पुप्फमूल-पुष्पमूला ( दिक्कुमारी ) ९।५।६ पेखेवि-देखकर १४८ पुप्फमित्त-पुष्पमित्रा (पत्नी) २।१७।३ पेट्ट-(देशी) पेट २।२।१२ पुप्फोत्तर-पुष्पोत्तर (देव विमान) ८।१७७ ३।४।१३ पुरउ-पुरतः सम्मुख, चारों ओर २०१७ पेम्मु-रइ-प्रेम रति १८।९ पुरवर-नगर १०।१६।११ पेया-प्रेत ५।१६।२ पुरस्सरु-पुरः + सृ + उ-अग्रगामी १।१२।१४ पेसिज्जइ-/पिष्, पीसा जाता है १।१४।८ पुराइय-पुराकृत, पूर्वाजित २।२२।६; ३।३०।१२ पेसहि-प्र + इष + हिं विधि, (भेजिए) ३।१०।६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org


Page Navigation
1 ... 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462